गिरफ्तारी और निरोध (Arrest and detention)-सीपीसी धारा 55



  गिरफ्तारी और निरोध (Arrest and detention)-

 


सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 55 में गिरफ्तारी और निरोध के बारे में प्रावधान किया है।

(1) निणींत-ऋणी डिक्री के निष्पादन में किसी भी समय और किसी भी दिन गिरफ्तार किया जा सकेगा और यथासाध्य शीघ्रता से न्यायालय के समक्ष लाया जाएगा और वह उस जिले के सिविल कारागार में, जिसमें निरोध का आदेश देने वाला न्यायालय स्थित है या जहां ऐसे सिविल कारागार में उपयुक्त वास-सुविधा नहीं है वहां ऐसी किसी अन्य स्थान में, जिसे राज्य सरकार ने ऐसे व्यक्तियों के निरोध के लिए नियत किया हो, जिनके निरुद्ध किए जाने का आदेश ऐसे जिले के न्यायालयों द्वारा दिया जाए, निरुद्ध किया जा सकेगा।

परन्तु

प्रथमतः इस धारा के अधीन गिरफ्तारी करने के प्रयोजन के लिए किसी भी निवास-गृह में सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय के पूर्व प्रवेश नहीं किया जाएगा।

परन्तु, द्वितीयतः निवास गृह का कोई भी बाहरी द्वारा तब तक तोड़कर नहीं खोला जाएगा,जब तक कि ऐसा निवास-गृह निर्णीत-ऋणी के अधिभोग में न हो और वह उस तक पहुंच होने देने से मना न कराता हो या पहुंच होने देना किसी भांति निवारित न करता हो, किन्तु जबकि गिरफ्तार करने के लिए प्राधिकृत अधिकारी ने किसी निवास गृह में सम्यक रूप से प्रवेश कर लिया है, तब वह किसी ऐसे कमरे का द्वार तोड़ सकेगा जिसके बारे में उसे यह विश्वास करने का कारण है कि उसमें निर्णीत ऋणी है।

परन्तु, तृतीयतः यदि कमरा किसी ऐसी स्त्री के वास्तविक अधिभोग में है, जो निर्णीत-ऋणी नहीं है और जो देश की रुड़ियों के अनुसार लोगों के सामने नहीं आती है तो गिरफ्तारी करने के लिए प्राधिकृत अधिकारी उसे यह सूचना देगा कि वह वहां हट जाने के लिए स्वतंत्र है और हट जाने के लिए युक्तियुक्त समय अनुज्ञात करने और हट जाने के लिए युक्तियुक्त सुविधा देने के पश्चात् वह गिरफ्तारी करने के प्रयोजन से कमरे में प्रवेश कर सकेगा।

परन्तु, चतुर्थतः जहां यह डिक्री, जिसके निष्पादन में निणीत-ऋणी को गिरफ्तार किया गया है, धन के संदाय के लिये डिक्री है और निर्णीत-ऋणी की रकम और गिरफ्तारी का खर्चा उस अधिकारी को संदत कर देता है, जिसने उसे गिरफ्तार किया है वहां ऐसा अधिकारी उसे तुरंत छोड़ देगा।

(2) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यह घोषणा कर सकेगी कि ऐसा कोई भी व्यक्ति या ऐसे व्यक्तियों का वर्ग, जिसकी गिरफ्तारी से लोगों को खतरा या असुविधा पैदा हो सकती है, डिक्री के निष्पादन में ऐसी प्रक्रिया से भिन्न प्रक्रिया के अनुसार जो राज्य सरकार इस निमित्त विहित करे, गिरफ्तारी किए जाने के दायित्व के अधीन नहीं होगा।

(3) जहां निर्णीत-ऋणी धन के संदाय के लिए डिक्री के निष्पादन में गिरफ्तार किया जाता है और न्यायालय के समक्ष लाया जाता है, वहां न्यायालय उसे यह बताएगा कि वह दिवालिया घोषित किए जाने के लिये आवेदन कर सकता है और यदि उसने आवेदन की विषय-वस्तु के संबंध में कोई असद्भावपूर्ण कार्य नहीं किया है और यदि तत्समय प्रवृत्त दिवाला विधि के उपबन्धों का अनुपालन करता है तो यह उन्मोचित किया जा सकेगा।

(4) जहां निर्णीत-ऋणी दिवालिया घोषित किए जाने के लिए आवेदन करने का अपना आशय प्रकट करता है और न्यायालय को समाधानप्रद प्रतिभूति इस बात के लिए दे देता है कि वह ऐसा आवेदन एक मास के भीतर करेगा और वह आवेदन-संबंधी या डिक्री-संबंधी, जिसके निष्पादन में वह गिरफ्तार किया गया था, किसी कार्यवाही में बुलाये जाने पर उपसंजात होगा वहां न्यायालय उसे गिरफ्तारी से छोड़ सकेगा और यदि वह ऐसे आवेदन करने और उपसंजात होने पर असफल रहता है। तो न्यायालय डिक्री के निष्पादन में या तो प्रतिभूति आप्त करने या उस व्यक्ति को सिविल कारागार को सुपुर्द किये जाने का निर्देश दे सकेगा।





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