जीवन निर्वाह भत्ता (धारा 57 सीपीसी)

 जीवन निर्वाह भत्ता -


सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 57 में जीवन निर्वाह भत्ता के बारे में प्रावधान किया गया है।

 राज्य सरकार निर्णीत ऋणी के जीवन निर्वाह के लिये संदेय मासिक भत्तों के मापमान, उसकी पंक्ति, मूलवंश और राष्ट्रीयता के अनुसार श्रेणीबद्ध करके नियत कर सकेगी। जब कभी निणींत ऋणी को किसी डिक्री के निष्पादन में सिविल कारगार में रखा जायेगा तो उसके लिये जीवन निर्वाह भत्ते की व्यवस्था की जायेगी। ऐसा जीवन निर्वाह भत्ता या तो डिक्रीधारी स्वयं या वह व्यक्ति जो डिक्री का निष्पादन कर रहा है, भुगतान करेगा। जीवन निर्वाह भत्ता मासिक देय होगा। उसका निर्धारण निर्णीत-ऋणी की पंक्ति (rank), मूलवंश (race) और राष्ट्रीयता को ध्यान में रखते हुये राज्य सरकार करेगी।

इस संदर्भ में आदेश 21 नियम 39 के निम्नलिखित प्रावधान है-

(1) जब तक और जिस समय तक डिक्रीधारी ने न्यायालय में ऐसी राशि जमा नहीं करा दी हो, जो न्यायाधीश निर्णीत-ऋणी की गिरफ्तारी से लेकर उसके न्यायालय में लाये जा सकने वाले उसके जीवन निर्वाह के लिये पर्याप्त समझता है, तब तक कोई निर्णीत ऋणी गिरफ्तार नहीं किया जायेगा।

(2) वहां निर्णीत ऋणी डिक्री के निष्पादन में सिविल कारागार को सुपुर्द किया जाता है वहां न्यायालय उसके जीवन निर्वाह के ऐसा मासिक भत्ता निर्धारित करेगा, जिसके लिये वह धारा 57 में प्राप्त करने का हकदार है अथवा यदि धारा 57 में राज्य सरकार ने निर्धारण नहीं किया है तो ऐसी राशि जिसे न्यायालय उचित समझे।

(3) न्यायालय द्वारा नियत किया गया भत्ता उस पक्षकार द्वारा जिसके आवेदन पर निर्णीत ऋणी गिरफ्तार किया गया है, अग्रिम मासिक संदायों द्वारा हर मास के प्रथम दिन के पूर्व दिया जायेगा।

(4) पहला भुगतान न्यायालय के उचित अधिकारी को चालू मास के ऐसे भाग के लिए किया जायेगा जो निर्णीत ऋणी के सिविल कारागार को सुपुर्द किये जाने के पूर्व शेष है और पश्चात्वर्ती भुगतान सिविल कारागार के भारसाधक अधिकारी को किये जायेंगे।

(5) सिविल कारागार में निर्णीत ऋणी के जीवन निर्वाह के लिये डिक्रीधारी द्वारा भुगतान की गई राशि वाद के खर्चे में समझी जायेगी।

निर्णीत ऋणी ऐसी संवितरित की गई राशि के लिये न तो सिविल कारागार में निरुद्ध किया जायेगा और न गिरफ्तार किया जायेगा।


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