निरोध और छोड़ा जाना (Detention and release

  निरोध और छोड़ा जाना (Detention and release) -


 सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 58 में निरोध और छोड़ा जाना के बारे में प्रावधान किया गया है। 

(1) डिक्री के निष्पादन में सिविल कारागार में निरुद्ध हर व्यक्ति- 

(क) जहां डिक्री पांच हजार रुपये से अधिक धनराशि का संदाय करने के लिये है, वहां तीन मास से अनधिक अवधि के लिए, और

(ख) जहां डिक्री दो हजार रुपये से अधिक किन्तु पांच हजार रुपये से अनधिक धनराशि का संदाय करने के लिए है, वहां छह सप्ताह से अधिक अवधि के लिए ऐसे निरोध किया जाएगा।

परंतु वह ऐसे निरोध में से:

(1) उसके निरोध के वारण्ट में वर्णित रकम का सिविल कारागार के भारसाधक अधिकारी को संदाय किये जाने पर, अथवा

( ii) उसके विरुद्ध डिक्री के अन्यथा पूर्ण रूप से तुष्ट हो जाने पर, अथवा

(iii) जिस व्यक्ति के आवेदन पर वह ऐसे निरुद्ध किया गया था उसके अनुरोध पर, अथवा

( iv) जिस व्यक्ति के आवेदन पर उसे निरुद्ध किया गया था उसके द्वारा जीवन-निर्वाह भत्ते का संदाय करने का लोप किए जाने पर, निरोध की उक्त अवधि के अवसान के पहले छोड़ दिया जायेगा।

परन्तु, 

यह भी कि वह खण्ड (ii) या खण्ड (iii) के अधीन ऐसे निरोध में से न्यायालय के आदेश के बिना नहीं छोड़ा जाएगा। 

(क) शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि जहां डिक्री की कुल रकम दो हजार रुपये से अधिक नहीं है वहां धन के संदाय की डिक्री के निष्पादन में निर्णीत-ऋणी को कारागार में निरुद्ध करने के लिए कोई आदेश नहीं किया जाएगा।

(2) इस धारा के अधीन निरोध में से छोड़ा गया निर्णीत-ऋणी अपने छोड़े जाने के कारण ही हमेशा से उन्मोचित नहीं हो जाएगा, किन्तु वह जिस डिक्री के निष्पादन में सिविल कारागार में किया गया था, उसके निष्पादन में पुनः गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा। 

के करुणाकरन शेट्टी बनाम सिण्डिकेट बैंक, मनिपाल, 1990  के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि सिविल कारावास का आदेश न केवल धन प्राप्ति की  डिक्री में ही अपितु संविदा के विनिर्दिष्ट अनुपालन, शाश्वत व्यादेश, आदि की डिक्रियों के निष्पादन में भी दिया जा सकता है।

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