विदेशी राज्य कब वाद ला सकेंगे (धारा 83-87) सीपीसी

विदेशी राज्य कब वाद ला सकेंगे (धारा 83-87) सीपीसी 


 सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 83 से 87 में अन्य देशीय द्वारा और विदेशी शासकों, राजदूतों और दूतों द्वारा या उनके विरुद्ध वाद के बारे में प्रावधान किया गया है।

धारा-83 अन्य देशीय कब वाद ला सकेंगे

अन्यदेशीय शत्रु जो कि केन्द्रीय सरकार की अनुज्ञा से भारत में निवास कर रहे हैं और अन्य देशीय मित्र किसी ऐसे न्यायालय में, जो कि वाद का विचारण करने के लिए अन्यथा सक्षम है उसी प्रकार वाद ला सकेंगे मानो कि वे भारत के ही नागरिक हों। किन्तु अन्यदेशीय शत्रु जो केन्द्रीय सरकार की अनुज्ञा के बिना भारत में निवास कर रहे हैं या जो विदेश में निवास कर रहे हैं, ऐसे किसी न्यायालय में वाद नहीं ला सकेंगे।

स्पष्टीकरण-

प्रत्येक ऐसे व्यक्ति के बारे में, जो कि ऐसे विदेश में निवास करता है, जिसकी सरकार भारत से युद्धरत है और जो उस देश में ऐसी अनुज्ञप्ति के बिना कारबार कर रहा है जो कि केन्द्रीय सरकार ने इस निमित्त अनुदत्त की है। इस धारा के प्रयोजन के लिए यह समझा जायेगा कि वह विदेश में निवास करने वाला अन्य देशीय शत्रु है।

धारा 84 विदेशी राज्य कब वाद ला सकेंगे

कोई भी विदेशी राज्य किसी भी सक्षम न्यायालय में वाद ला सकेगा-

परन्तु, 

यह तब जब कि वाद का उद्देश्य ऐसे राज्य के शासक में या ऐसे राज्य के किसी अधिकारी में उसकी लोक हैसियत में निहित प्राइवेट अधिकारों का प्रवर्तन कराना हो।

धारा-85 विदेशी शासकों की ओर से अभियोजन या प्रतिरक्षा करने के लिए सरकार द्वारा विशेष रूप से नियुक्त किये गये व्यक्ति 

(1) विदेशी राज्य के शासकों के अनुरोध पर या ऐसे शासक की ओर से कार्य करने की केन्द्रीय सरकार की राय में सक्षम किसी व्यक्ति के अनुरोध पर, केन्द्रीय सरकार ऐसे शासक की ओर से किसी वाद का अभियोजन करने या प्रतिरक्षा करने के लिये किन्हीं व्यक्तियों को आदेश द्वारा नियुक्त कर सकेगी और ऐसे नियुक्त किये गये कोई भी व्यक्ति ऐसे मान्यता प्राप्त अभिकर्ता समझे जायेंगे जो ऐसे शासकों की ओर से इस संहिता के अधीन उपसंजात हो सकेंगे और कार्य और आवेदन कर सकेंगे।

(2) इस धारा के अधीन नियुक्त किसी विनिर्दिष्ट वाद के या अनेक विनिर्दिष्ट वादों के प्रयोजन के लिये या ऐसे सभी वादों के प्रयोजनों के लिये की जा सकेगी, जिनका ऐसे शासक की ओर से अभियोजन या प्रतिरक्षा करना समय-समय पर आवश्यक हो।

(3) इस धारा के अधीन नियुक्त व्यक्ति ऐसे किसी वाद या किन्हीं वादों में उपसंजात होने तथा आवेदन और कार्य करने के लिये किन्हीं अन्य व्यक्तियों को ऐसे प्राधिकृत या नियुक्त कर सकेगा मानो वह स्वयं ही उसका या उनका पक्षकार हो।

धारा 86 विदेशी राज्यों, राजदूतों और दूतों के विरुद्ध वाद (1) विदेशी राज्य पर कोई भी वाद किसी भी न्यायालय में, जो अन्यथा ऐसे वाद का विचारण करने के लिए सक्षम है, केन्द्रीय सरकार की ऐसी सहमति के बिना नहीं लाया जा सकेगा, जो उस सरकार के किसी सचिव द्वारा लिखित रूप में प्रमाणित की गई हो :

परन्तु, 

वह व्यक्ति, जो स्थावर सम्पत्ति के अधिकारी के तौर पर ऐसे विदेशी राज्य पर, जिससे वह सम्पत्ति को धारण करता है या धारण करने का दावा करता है, यथापूर्वोक्त सहमति के बिना वाद ला सकेगा।

(2) ऐसी सहमति विनिर्दिष्ट वाद या अनेक विनिर्दिष्ट वादों या किन्हीं विनिर्दिष्ट वर्ग के वर्गों के समस्त वादों के बारे में दी जा सकेगी और वह किसी वाद या वादों के वर्ग की दशा में उस न्यायालय को भी विनिर्दिष्ट कर सकेगी, जिसमें उस विदेशी राज्य के विरुद्ध वाद लाया जा सकेगा, किन्तु वह तब तक नहीं दी जायेगी जब तक केन्द्रीय सरकार को वह प्रतीत नहीं होता कि वह विदेशी राज्य,

(क) उस व्यक्ति के विरुद्ध जो उस पर वाद लाने की वांछा करता है, उस न्यायालय में वाद संस्थित कर चुका है, अथवा

(ख) स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उस न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर व्यापार करता है, अथवा

(ग) उन सीमाओं के भीतर स्थित स्थावर सम्पत्ति पर कब्जा रखता है और उसके विरुद्ध ऐसी सम्पत्ति के बारे में या उस धन के बारे में जिसका भार उस सम्पत्ति पर है, वाद लाया जाना है, अथवा

(घ) इस धारा द्वारा उसे दिये गये विशेषाधिकार का अधित्यजन अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से कर चुका है।

(3) केन्द्रीय सरकार के सचिव द्वारा लिखित रूप में प्रमाणित कोई डिक्री विदेशी राज्य की सम्पत्ति के विरुद्ध केन्द्रीय सरकार की सहमति से ही निष्पादित की जायेगी, अन्यथा नहीं।

(4) इस धारा के पूर्ववर्ती उपबंध निम्नलिखित के संबंध में वैसे ही लागू होंगे, जैसे वे विदेशी राज्य के संबंध में लागू होते हैं-

(क) विदेशी राज्य का कोई शासक

(कक) विदेशी राज्य का कोई भी राजदूत या दूत

(ख) कामनवेल्थ देश का कोई भी उच्चायुक्त, तथा

(ग) विदेशी राज्य के कर्मचारीवृन्द का या विदेशी राज्य के राजदूत या दूत के या कामनवेल्थ देश के उच्चायुक्त के कर्मचारीवृन्द या अनुचर वर्ग का कोई भी ऐसा सदस्य, जिसे केन्द्रीय सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निर्मित्त विनिर्दिष्ट करे।

(5) इस संहिता के अधीन निम्नलिखित व्यक्ति गिरफ्तार नहीं किये जायेंगे, अर्थात्

(क) विदेशी राज्य का कोई शासक,

(ख) विदेशी राज्य का कोई भी राजदूत या दूत,

(ग) कामनवेल्थ देश का कोई भी उच्चायुक्त, तथा

(घ) विदेशी राज्य के कर्मचारीवृन्द का या विदेशी राज्य के राजदूत या दूत के या कामनवेल्थ देश के उच्चायुक्त के कर्मचारीवृन्द या अनुचर वर्ग का कोई भी ऐसा सदस्य, जिसे केन्द्रीय सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निर्मित विनिर्दिष्ट करें।

(6) जहां केन्द्रीय सरकार को उपधारा (1) में निर्दिष्ट सहमति देने का अनुरोध किया जाता है, वहां केन्द्रीय सरकार ऐसे अनुरोध को स्वीकार करने से पूर्णतः या भागतः इन्कार करने से पहले अनुरोध करने वाले व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर देगी।

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 86 के प्रावधान उन कार्यवाहियों में, जो उपभोक्ता फोरम के समक्ष हैं उन पर नहीं लागू होती क्योंकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम एक विशेष अधिनियम है, जो धारा 86 की प्रयोज्यता को को वर्जित करता है।

इथोपियन एयरलाइन्स बनाम गनेश नारायन साबू, ए. आई. आर. 2011 सु. को. के वाद में इथोपियन एयरलाइन्स के विरुद्ध एक शिकायत की गई थी कि उसने एक भेजे हुए माल को गन्तव्य स्थान पर विलम्ब से परिदान किया। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में अभिनिर्धारित किया कि इथोपियन एयरलाइन्स सम्प्रभु को मिलने वाली छूट का हकदार नहीं है।

धारा 87 विदेशी शासकों का बाद के पक्षकारों के रूप में अभिधान-

विदेशी राज्य का शासक अपने राज्य के नाम से वाद ला सकेगा और उसके विरुद्ध वाद उसके राज्य के नाम से लाया जायेगा-

परन्तु

धारा 86 में निर्दिष्ट सहमति देने के केन्द्रीय सरकार शासक के विरुद्ध किसी अभिकर्ता के नाम से या किसी अन्य नाम से वाद लाये जाने का निर्देश दे सकेगी।

उच्चतम न्यायालय ने मिर्जा अलीअकबर बनाम यूनाइटेड अरब रिपब्लिक , 1966 सु. को. के बाद में अपने निर्णय के माध्यम से कहा कि धारा 84, 86 और 87 को एक साथ पड़ने का प्रभाव यह है कि वाद राज्य के नाम से संस्थित किया जायेगा, चाहे, वह वाद विदेशी राज्य द्वारा धारा 84 में हो या वह किसी विदेशी शासक के विरुद्ध धारा 86 के अधीन हो। प्रक्रिया की दृष्टि से यह सम्भव नहीं होगा कि विदेशी राज्य के शासक और विदेशी राज्य जिसका कि वह शासक है, के बीच प्रभावी अन्तर किया जा सके। हर हालत में, प्रक्रिया के उद्देश्य के वाद राज्य के नाम से संस्थित किया जायेगा। 

विदेशी राज्य-सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 87 'क' में विदेशी राज्य को परिभाषित किया गया है।

'विदेशी राज्य' से भारत से बाहर का ऐसा कोई राज्य अभिप्रेत है, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है, तथा

'शासक'- विदेशी राज्य के सम्बन्ध में 'शासक' से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो उस राज्य के अधिपति के रूप में केन्द्रीय सरकार द्वारा तत्समय मान्यता प्राप्त है।

मिर्जा अली अकबर बनाम यूनाइटेड अरब रिपब्लिक, 1966 सु. को. के वाद में कहा गया कि 'विदेशी राज्य का शासक' पद की परिभाषा, जो धारा 87 'क' में दी गयी है उसके अन्तर्गत न केवल वे विदेशी शासक आते हैं जिनके यहां राजतन्त्र (बादशाही) है बल्कि वे भी आते हैं जिनके यहां राजतन्त्र नहीं है, बल्कि दूसरे प्रकार की सरकार है जैसे गणतन्त्र।

प्रश्न- अन्य देशीय द्वारा और विदेशी शासकों, राजदूतों और दूतों द्वारा या उनके विरुद्ध वाद के बारे में सिविल प्रक्रिया संहिता में क्या प्रावधान किया गया है?

विदेशी राज्य कब वाद ला सकेंगे?

विदेशी राज्यों, राजदूतों और दूतों के विरुद्ध वाद किसकी सहमति से लाया जा सकेगा?

विदेशी राज्य का शासक किसके नाम से वाद ला सकेगा?

विदेशी राज्य' एवं 'शासक' की परिभाषा दीजिए?




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