कैविएट (धारा-148 'क'-
कैविएट (धारा-148 'क'-
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 148 'क' में कैविएट के बारे में प्रावधान किया गया है।
धारा-148 'क' के अनुसार, (1) जहां किसी न्यायालय में संस्थित या शीघ्र ही संस्थित होने वाले किसी वाद या कार्यवाही में किसी आवेदन का किया जाना प्रत्याशित है या कोई आवेदन किया गया है। वहाँ कोई व्यक्ति जो ऐसे आवेदन की सुनवाई में न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के अधिकार का दावा करता है, उसके बारे में कैविएट दायर कर सकेगा।
(2) जहां उपधारा (1) के अधीन कैविएट दायर किया गया है, वहां वह व्यक्ति, जिसके द्वारा कैविएट दायर किया गया है (जिसे इसमें इसके पश्चात् कैविएट कर्ता कहा गया है), उस व्यक्ति पर जिसके द्वारा उपधारा (1) के अधीन आवेदन किया गया है या किये जाने की प्रत्याशा है, कैविएट की सूचना की तामील रसीदी रजिस्ट्री डाक द्वारा करेगा।
(3) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई कैविएट दायर किये जाने के पश्चात् किसी वाद या कार्यवाही में कोई आवेदन फाइल किया जाता है, वहां न्यायालय आवेदन की सूचना कैविएटकर्ता को देगा।
(4) जहां आवेदक पर किसी कैविएट की सूचना की तामील की गयी है। वहाँ उसके द्वारा किये गये आवेदन की और उस आवेदन के समर्थन में इसके द्वारा फाइल किये गये या फाइल किये जाने वाले किसी कागज या दस्तावेज की प्रतियाँ कैविएटकर्ता के खर्चे पर कैविएटकर्ता को तुरन्त देगा।
(5) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई कैविएट दायर किया गया है वहां ऐसा कैविएट उस तारीख से जिसको वह दायर किया गया था, नब्बे दिन के अवसान के पश्चात् प्रवृत्त नहीं रहेगा जब तक कि उपधारा (1) में निर्दिष्ट आवेदन उक्त अवधि के अवसान के पूर्व नहीं किया गया हो।
एर्ल जोबिट डिक्शनरी ऑफ इंगलिश लॉ, वाल्यूम 1 के अनुसार, कैविएट से तात्पर्य किसी रजिस्ट्री कार्यालय या न्यायालय की किताबों में ऐसी प्रविष्टि है, जिसके माध्यम से कैविएट दर्ज कराने वाले व्यक्ति के सम्बन्ध में बिना उसे सूचना के कोई कदम उठाने से रोकना है।
मेसर्स एन. डी. को. आ. हाउसिंग लि. बनाम मेसर्स साधना बिल्डर्स, 1984 बाम्बे के वाद में कहा गया कि इस धारा के अन्तर्गत कोई निर्णीत-ऋणी आदेश 21, नियम 43 या 54 के अधीन आवेदन में कैविएट नहीं दाखिल कर सकेगा।
एच, जी, शंकर नारायन बनाम राज्य, 1985 राज, के वाद में कहा गया कि इस धारा के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत कार्यवाहियों पर लागू नहीं होंगे।
उद्देश्य-
इस धारा का उद्देश्य न्यायालय द्वारा एकपक्षीय आदेश (ex parte decre) पारित करने से रोकना है। कैविएट दर्ज कराने वाले पक्षकार की इच्छा यह होती है कि न्यायालय कोई भी एकपक्षीय आदेश देने से पहले उसे सुनवाई का अवसर प्रदान करे। ऐसा करने के लिये उसे न्यायालय के अभिलेख में या पुस्तकों में एक प्रविष्टि करनी होगी। कोई आवश्यक नहीं है कि कैविएट दर्ज कराने वाला व्यक्ति मुकदमे का आवश्यक पक्षकार हो। इसका दूसरा उद्देश्य कार्यवाहियों की बहुलता को रोकना है।
ऐसा कैविएट अनिश्चितकाल तक लागू नहीं रहेगा। उसके लिए समयावधि निश्चित की गयी है और यह 90 दिन की है।
सरला कपूर बनाम संजय सुदेश, 2009 बाम्बे के वाद में प्रोबेट सम्बन्धी कार्यवाही में प्रोबेट के विरोधी पक्षकार ने कैविएट का आवेदन प्रस्तुत किया तथा उसने इसके अतिरिक्त शपथपत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया। इस प्रकार का शपथपत्र बिना न्यायालय की इजाजत के अभिलेख का भाग नहीं हो सकता।
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