विक्रय को अपास्त करना (आदेश 21 नियम 89,90,एंव 90)-

विक्रय को अपास्त करना (आदेश 21 नियम 89,90,एंव 90)


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सिविल प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत नीलामी में किसी अचल सम्पत्ति का जब विक्रय हो जाता है तो सम्पत्ति में हितबद्ध व्यक्तियों को विधि एक अंतिम अवसर देती है कि यदि वे चाहें तो ऐसी सम्पत्ति का विक्रय आदेश 21 नियम 89, 90 एवं 91 के प्रावधानानुसार अपास्त करा सकेंगे। ये प्रावधान निम्नलिखित हैं-

नियम 89 निक्षेप करने पर विक्रय को अपास्त कराने के लिये आवेदन-

 (1) जहां स्थावर सम्पत्ति का किसी डिक्री के निष्पादन में विक्रय किया गया है। वहां विक्रीत में विक्रय के समय या आवेदन के समय किसी हित का दावा करने वाला अथवा ऐसे व्यक्ति के लिये या हित में कार्य करने वाला कोई व्यक्ति-

(क) क्रय धन के पांच प्रतिशत के बराबर रकम क्रेता को संदत्त किये जाने के लिये, तथा 

(ख) विक्रय की उद्घोषणा में ऐसी रकम के रूप में, जिसकी वसूली के लिये विक्रय का आदेश दिया गया था, विनिर्दिष्ट रकम उनमें से वह रकम घटाकर जो विक्रय की उद्घोषणा   तारीख से लेकर तब तक डिक्रीदार को प्राप्त हो चुकी हो, डिक्रीदार को संदत्त किये जाने के लिये, न्यायालय में निक्षिप्त करने पर विक्रय को अपास्त कराने के लिये आवेदन कर सकेगा।

(2) जहां कोई व्यक्ति अपनी स्थावर सम्पत्ति के विक्रय को अपास्त करने के लिये आवेदन नियम 90 के अधीन करता है, वहां जब तक कि वह अपना आवेदन लौटा न ले, वह इस नियम के अधीन आवेदन देने का था उसको आगे लगाने का हकदार नहीं होगा।

(3) इस नियम की कोई भी बात निर्णीत-ऋणी को ऐसे किसी दायित्व से मुक्त नहीं करेगी, जिसके अधीन वह उन खचों और ब्याज के सम्बन्ध में हो जो विक्रय की उद्‌घोषणा के अन्तर्गत नहीं आते।

त्रिभुवन दास बनाम रतीलाल, ए. आई. आर. 1968 सु. को.  के वाद में कहा गया कि नियम 89 के माध्यम से निर्णीत-ऋणी को अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है कि यदि वह नीलामी क्रेता के लिये प्रतिकर (जो हानि उसे नीलामी की सम्पत्ति न प्राप्त करके होगी) की व्यवस्था करे तो विक्रय को अपास्त किया जा सकता है।

कौन आवेदन कर सकेगा?-

 निम्नलिखित व्यक्ति आवेदन कर सकेंगे-

(1) कोई भी व्यक्ति जिसका विक्रीत सम्पत्ति में

(a) विक्रय के समय, या

(b) विक्रय को अपास्त करने के लिये आवेदन करने के समय, हित वर्तमान है या ऐसे हित का दावा करता है,

(ii) कोई भी व्यक्ति जो उपरोक्त व्यक्तियों के लिये या उनके हित में कार्य करने वाला हो।

इसके अधीन तमाम प्रकार के लोग आयेंगे। यथा- निर्णीत-ऋणी, सम्पत्ति का सहभागीदार, संयुक्त हिन्दू परिवार का कोई सदस्य, उत्तरभोगी, कुर्क कराने वाला ऋणदाता, पट्टाधारी, बन्धकधारी, सम्पत्ति का कब्जाधारी, बेनामीदार अन्तरणकर्ता आदि।

आवेदन की शर्तें- 
इस नियम के अधीन विक्रय को अपास्त कराने के लिये निम्न प्रकार के निक्षेप न्यायालय में करने होंगे-

(i) क्रय धन के पांच प्रतिशत के बराबर रकम क्रेता को संदत्त किये जाने के लिये, तथा

(ii) विक्रय की उद्घोषणा में दी गई रकम (जिसकी वसूली के लिये विक्रय का आदेश दिया गया था) डिक्रीदार को संदत्त किये जाने के लिये। परन्तु जहां निर्णीत-ऋणी इस नियम के अन्तर्गत नीलामी बिक्री को निरस्त कराने के लिये न्यायालय को आवेदन देकर यह जानना चाहता है कि ठीक-ठीक निर्णीत देय कितना है ताकि वह उसे जमा कर सके, वहां कलकत्ता उच्च न्यायालय ने श्यामा चरन अछी बनाम विमला बाला सेन ए. आई. आर. 1993 कल.  के वाद में यह अभिनिर्धारित किया कि निर्णीत ऋणी को बिना यह अवसर दिये कि वह बिक्री को निरस्त करने के लिये धन निक्षेप कर सके, उसके आवेदन को खारिज कर विक्रय की पुष्टि कर देना अवैध है।

रामकरन गुप्ता बनाम जे. एस. इक्जाम लि., ए. आई. आर. 2013 सु. को.  के वाद में कहा गया कि क्रय धन के पांच प्रतिशत के बराबर रकम का जमा करना, नियम 89 के अधीन आवेदन का एक अपरिहार्य शर्त है।

परिसीमा-
ऐसा निक्षेप शर्तरहित और नकद किया जाना चाहिए, चेक या सरकारी वचनपत्र में नहीं। उपरोक्त निक्षेप एवं आवेदन विक्रय की तिथि से साठ दिन के भीतर किया जाना चाहिए। जहां निक्षेप किये जाने वाले धनराशि को न्यायालय द्वारा विलम्ब से सूचित किया गया। वहां विलम्ब से धनराशि का जमा किया जाना उचित है। इसको चुनौती नहीं दी जा सकती। (सुकुमार डे बनाम विमला अछी, ए. आई. आर. 2014 सु. को. 1000)

मेसर्स शालीमार सिनेमा और अन्य बनाम भसीन फिल्म कारपोरेशन, ए. आई, आर. 1985 (एन. ओ. सी.)  दिल्ली के वाद में कहा गया कि जहां कोई व्यक्ति अपनी स्थावर सम्पत्ति के विक्रय को अपास्त कराने के लिये आवेदन नियम 90 के अधीन देता है। वहां जब तक कि वह अपना आवेदन (नियम 90 का) लौटा न ले, नियम 89 के अधीन आवेदन देने का या उसको आगे चलाने का हकदार नहीं होगा।

अपील-
 ऐसा आदेश जिसके माध्यम से नियम 92 के अधीन विक्रय को अपास्त किया जाता है या नियम 89 के आवेदन को अस्वीकार किया जाता है, अपील योग्य है। (सत्यपाल बनाम रुक्कयाबाई, ए. आई. आर. 1993 बाम्बे)

नियम -90 विक्रय को अनियमितता या कपट के आधार पर अपास्त कराने के लिये आवेदन- 
(1) जहां किसी डिक्री व निष्पादन में किसी स्थावर सम्पत्ति का विक्रय किया गया है। वहां डिक्रीदार या क्रेता या ऐसा कोई अन्य व्यक्ति जो आस्तियों के आनुपातिक वितरण में अंश पाने का हकदार है या जिसके हित विक्रय के द्वारा प्रभावित हुए हैं, विक्रय को उसके प्रकाशन या संचालन में हुई तात्विक अनियमितता या कपट के आधार पर अपास्त कराने के लिये न्यायालय में आवेदन कर सकेगा।

(2) उसके प्रकाशन या संचालन में हुई अनियमितता या कपट के आधार पर कोई भी विक्रय जब तक अपास्त नहीं किया जायेगा, जब तक साबित किये गये तथ्यों के आधार पर न्यायालय का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसी अनियमितता या कपट के कारण आवेदक को सारवान क्षति हुई है।

(3) इस नियम के अधीन विक्रय को अपास्त कराने के लिये कोई आवेदन ऐसे किसी आधार पर ग्रहण नहीं किया जायेगा जिसे आवेदक उस तारीख को यी उससे पूर्व आधार मान सकता था जिसको कि विक्रय की उद्घोषणा तैयार की गई थी।
स्पष्टीकरण-
विक्रीत सम्पत्ति की कुर्की का न होना यो कुर्की में त्रुटि अपने आप में इस नियम के अधीन किसी विक्रय को अपास्त करने के लिये कोई आधार नहीं होगी।

नियम 90 के अधीन भी अचल सम्पत्ति की बिक्री को अपास्त कराया जा सकता है, किन्तु यहां आवेदन का आधार नियम 89 से भिन्न है।

आधार (Ground)-
 नियम 90 के अधीन अचल सम्पत्ति की विक्री को निम्न आधार पर अपास्त कराया जा सकता है-"

(i) विक्रय के प्रकाशन या संचालन में हुई तात्विक अनियमितता, या

(ii) विक्रय के प्रकाशन या संचालन में हुये कपट के आधार पर-

(क) ऐसी अनियमितता या कपट से उसे सारवान क्षति पहुंची है, और

(ख) ऐसी क्षति अनियमितता और कपट का परिणाम है।

परन्तु यहां ध्यान रखा जाना चाहिए कि जहां निर्णीत-ऋणी को निष्पादन की कार्यवाही के बारे में प्रारंभ से (निष्पादन के आवेदन की तिथि से) और विक्रय की पुष्टि तक अंधेरे में रखा गया है या वह निष्पादन की कार्यवाही से पूरी तरह अनभिज्ञ है। वहां जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने सत्यनारायन बजोरिया बनाम रामनरायन टिब्रेवाल, ए. आई. आर. 1994 सु. को. नामक वाद में अभिनिर्धारित किया कि यह मात्र अनियमितता नहीं है, यहां पूरा विक्रय दूषित है।

कौन आवेदन कर सकेगा?-
 इस नियम के अधीन निम्नलिखित व्यक्ति आवेदन कर सकेंगे-

(1) डिक्रीदार

(ii) नीलामी-क्रेता

(iii) आस्तियों के समानुपातिक वितरण में अंश पाने का हकदार व्यक्ति,

(iv) वह व्यक्ति जिसका ऐसे विक्रय से हित प्रभावित होता हो,

(अ) निर्णीत-ऋणी

(ब) निर्णीत-ऋणी का वैध प्रतिनिधि

(स) अवयस्क निर्णीत-ऋणी का संरक्षक, और

(द) मुकदमें के दौरान निर्णीत-ऋणी से सम्पत्ति का क्रेता आदि।

तात्विक अनियमितता - 
नियम 90 के अधीन निम्नलिखित को तात्विक अनियमितता माना गया है,

(i) नियम 22 के अधीन एक गलत व्यक्ति पर वैध प्रतिनिधि की हैसियत से सूचना की तामील या नियम 22 के अधीन सूचना की तामील न करना।

(ii) सम्पत्ति के मूल्य के अभिनिर्धारण में लोप करना, जिसे विक्रय की उद्घोषणा में दर्ज किया जा सके।

(iii) नियम 66 के अधीन विक्रय उद्घोषणा के विज्ञापन में लोप।

(iv) विक्रय की उद्घोषणा में सम्पत्ति का सही-सही विवरण न देना।

(v) विक्रय की अधिघोषणा में दिये गये समय से पूर्व नीलामी या विक्रय।

(vi) विक्रय की अधिघोषणा में दिये गये स्थान से भिन्न स्थान पर बिक्री या नीलामी।

(vii) ढोल पीटने में लोप करना।

(viii) सम्पत्ति का सर्वे संख्या देने में लोप करना।

(ix) डिक्री की तुष्टि के बाद विक्रय।

(x) निष्पादन के स्थगन आदेश के पश्चात् विक्रय।

(xi) बिना तिथि निश्चित किये गये विक्रय का स्थगन।

(xii) विक्रय उद्घोषणा में सम्पत्ति से सम्बन्धित मुकदमेबाजी का जिक्र करने में लोप आदि।

(xii) जहां न्यायालय ने आदेश दिया कि विक्रय का संचालन एस. डी. ओ. (सिविल) के द्वारा किया जाय, जिससे भूमि की कीमत ज्यादा मिले और संचालन एस. डी. ओ. के द्वारा नहीं किया गया। (लुधियाना इम्प्रूवमेन्ट ट्रस्ट बनाम बलराज सिंह, ए. आई. आर. 2002)

परिसीमा-
विक्रय को निरस्त किये जाने वाला आवेदन विक्रय की तिथि से साठ दिन के भीतर दिया जाना चाहिए। (अनु. 127 परिसीमा अधि. 1963)

अपील-
विक्रय को अपास्त करने या अपास्त करने से इंकार करने के आदेश के विरुद्ध अपील की जा सकती है। (आदेश 43 नियम 1 अ)

नियम 91 विक्रय का इस आधार पर अपास्त करने के लिये क्रेता द्वारा आवेदन कि उसमें निर्णीत-ऋणी का कोई विक्रय योग्य हित नहीं था-
 डिक्री के निष्पादन में ऐसे किसी भी विक्रय में का क्रेता, विक्रय को अपास्त कराने के लिये आवेदन न्यायालय से इस आधार पर कर सकेगा कि विक्रय की गई सम्पत्ति में निर्णीत-ऋणी का कोई विक्रय योग्य नहीं था।

कौन आवेदन कर सकेगा ? - 
नीलामी-क्रेता आवेदन कर सकता है और यदि डिक्रीदार स्वयं नीलामी-क्रेता है तो वह भी इस नियम के अधीन आवेदन कर सकता है इस नियम के अधीन निर्णीत- ऋणी आवेदन नहीं कर सकता है।

विक्रय योग्य हित-
नियम 91 इस धुरी पर आधारित है कि बिक्रीकृत सम्पत्ति में विक्रेता का कुछ भी हित नहीं था। अगर विक्रेता का ऐसी सम्पत्ति में कुछ हित था, चाहे जितना कम वह क्यों न हो यह नियम लागू नहीं होगा। अतः क्रेता इस आधार पर कि क्रेता का बहुत कम भाग में हित है। अधिकांश में नहीं है, इस नियम का सहारा नहीं ले सकता।

परिसीमा-
आवेदन देने के लिये वही परिसीमा है, जो नियम 78, 89 और 90 के अधीन । 
अपील-
अपील के लिये भी वही प्रक्रिया है, जो नियम 89 और 90 में बतायी गयी है।



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