विक्रय कब आत्यन्तिक हो जाएगा या अपास्त कर दिया जायेगा? (सीपीसी )आदेश 21 नियम 92)-

 विक्रय कब आत्यन्तिक हो जाएगा या अपास्त कर दिया जायेगा?[ (सीपीसी )आदेश 21 नियम 92)]-


सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 के नियम 92 के अनुसार, (1) जहां नियम 89, 90 या 91 के अधीन कोई भी आवेदन नहीं किया गया है या जहां ऐसा आवेदन किया गया है और अनुज्ञात कर दिया गया है। वहां न्यायालय विक्रय को पुष्ट करने वाला आदेश करेगा और तब विक्रय आत्यन्तिक हो जायेगा:

परन्तु,

जहां किसी सम्पत्ति का, ऐसी सम्पत्ति के किसी दावे का अन्तिम निपटारा होने तक या उसकी कुर्की के लिये आक्षेप के लम्बित रहने तक डिक्री के निष्पादन में विक्रय किया गया है, वहां न्यायालय ऐसे विक्रय को ऐसे दावे या आक्षेप के अन्तिम निपटारे तक पुष्ट करेगा।

(2) जहां ऐसा आवेदन किया गया है और अनुज्ञात कर दिया गया है और जहां नियम 89 के अधीन आवेदन की दशा में वह निक्षेप जो उस नियम द्वारा अपेक्षित है, विक्रय की तारीख से (साठ दिन) के भीतर कर दिया गया है। उस दशा में जिसमें नियम 89 के अधीन निक्षिप्त रकम निक्षेपकर्ता की ओर से हुई किसी लिपिकीय गणित सम्बन्धी भूल के कारण कम पाई जाती है और ऐसी कमी इतने समय के भीतर पूरी कर दी जाती है जितना न्यायालय द्वारा नियत किया जाये वहां न्यायालय विक्रय को अपास्त करने वाला आदेश करेगा

परन्तु,

जब तक कि आवेदन की सूचना उसके द्वारा प्रभावित सभी व्यक्तियों को न दे दी गई हो, ऐसा कोई आदेश नहीं किया जायेगा:

परन्तु,

यह और भी कि इस उपनियम के अधीन निक्षेप इन सभी मामलों में जहां कि तीस दिन की अवधि जिसके भीतर निक्षेप किया जाना था, सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2002 के आरम्भ होने से पूर्व समाप्त नहीं हुई है, साठ दिन के भीतर किया जा सकेगा:

(3) इस नियम के अधीन किये गये आदेश को अपास्त कराने के लिये कोई भी वाद ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा नहीं लाया जायेगा जिसके विरुद्ध ऐसा आदेश किया गया है।

(4) जहां कोई अन्य पक्षकार नीलाम-क्रेता के विरुद्ध वाद फाइल करके निर्णीत-ऋणी के हक को चुनौती देता है। वहां डिक्रीदार और निर्णीत-ऋणी वाद के आवश्यक पक्षकार होंगे।

(5) यदि उपनियम (4) में निर्दिष्ट वाद की डिक्री दे दी जाती है तो न्यायालय डिक्रीदार को निदेश देगा कि वह नीलाम क्रेता को धन वापस कर दे और जहां ऐसा आदेश पारित किया जाता है वहां निष्पादन की कार्यवाहियां जिनमें विक्रय किया गया था, उस दशा में सिवाय, जिसमें न्यायालय अन्यथा निदेश देता है, उस प्रक्रम पर पुनः प्रवर्तित की जायेगी जिस पर विक्रय का आदेश किया गया था।

जहां नीलामी विक्रय के विरुद्ध आक्षेप नियम 90 के अन्तर्गत नहीं दाखिल किया गया, और बिक्री की पुष्टि नियम 92 के अन्तर्गत कर दी गई। वहां ऐसे पुष्टि के आदेश को चुनौती नहीं दी जा सकती है। ऐसा निर्णय पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने बक्सों बनाम पाखर सिंह, ए. आई. आर. 1985 पं. एण्ड हरि, नामक वाद में दिया।

कनचेरला लक्ष्मीनारायना बनाम मट्टापरथी श्यामला, ए. आई. आर. 2008 सु. को. के वाद में कहा गया कि इस नियम के अन्तर्गत एक करार का धारक विक्रय की पुष्टि के बारे में आक्षेप कर सकता है।

क्रेता का हक (धारा 65) के अनुसार, जहां आज्ञप्ति के निष्पादन में स्थावर सम्पत्ति का विक्रय हो जाता है और ऐसा विक्रय पूर्ण हो गया है। वहां यह समझा जायेगा कि सम्पत्ति क्रेता में उस समय से निहित हो गई है, जिस समय सम्पत्ति का विक्रय किया गया था न कि विक्रय के पूर्ण होने के दिन से।


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