कब्जे के परिदान का प्रतिरोध करने के संबंध में सिविल प्रक्रिया के अन्तर्गत क्या प्रावधान किया गया है? (सीपीसी आदेश 21नियम 97 से 106)-

 कब्जे के परिदान का प्रतिरोध करने के संबंध में सिविल प्रक्रिया के अन्तर्गत क्या प्रावधान किया गया है? (सीपीसी आदेश 21नियम 97 से 106)-


सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 74 एवं आदेश 21 के नियम 97 से 106 तक के अन्तर्गत इस संबंध में प्रावधान किया गया है।

धारा 74 के अनुसार, अगर क्रेता को कब्जा प्राप्त करने में निर्णीत-ऋणी द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बाधा पहुंचायी जा रही है और ऐसी बाधा न्यायसंगत नहीं है तो डिक्रीदार या क्रेता की प्रेरणा से निर्णीत-ऋणी या ऐसे अन्य व्यक्ति को न्यायालय तीस दिन तक सिविल कारागार में निरुद्ध करने का आदेश पारित कर सकेगा। साथ-साथ न्यायालय यह भी आदेश दे सकता है कि डिक्रीदार या क्रेता को सम्पत्ति का कब्जा दिलाया जाय।

धारा 74 में सामान्य प्रावधानों के साथ-साथ ऐसे निरुद्ध करने वाले व्यक्ति को किस प्रकार से रोका जायेगा। इस संबंध में आदेश 21 के नियम 97 से 106 में एक प्रक्रिया दी गई है, जो निम्न प्रकार से है-

नियम 97 स्थावर सम्पत्ति पर कब्जा करने में प्रतिरोध या बाधा-

 (1) जहां स्थावर सम्पत्ति के कब्जे की डिक्री के धारक या डिक्री के निष्पादन में विक्रय की गई। ऐसी किसी सम्पत्ति के क्रेता का ऐसी सम्पत्ति पर कब्जा अभिप्राप्त करने में किसी व्यक्ति द्वारा प्रतिरोध किया जाता है या उसे बाधा डाली जाती है वहां वह ऐसे प्रतिरोध या बाधा का परिवाद करते हुए आवेदन न्यायालय से कर सकेगा।

(2) जहां कोई आवेदन उपनियम (1) के अधीन किया जाता है। वहां न्यायालय उस आवेदन पर न्याय निर्णय इसमें अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अनुसार करने के लिये अग्रसर होगा।

नियम 98 न्यायनिर्णयन के पश्चात् आदेश-
 (1) नियम 101 में निर्दिष्ट प्रश्नों के अवधारण पर, न्यायालय ऐसे अवधारण के अनुसार और उपनियम (1) के उपबन्धों के अधीन रहते हुये -

(क) आवेदन को मंजूर करते हुये और यह निदेश देते हुये कि आवेदक की सम्पत्ति का कब्जा दे दिया जाने या आवेदन को खारिज करते हुये आदेश करेगा, या

(ख) ऐसा अन्य आदेश पारित करेगा जो वह मामले की परिस्थितियों में ठीक समझे।

(2) जहां ऐसे अवधारण पर, न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि निर्णीत-ऋणी उसके उकसाने पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से या किसी अन्तरिती द्वारा उस दशा में जिसमें ऐसा अन्तरण वाद या निष्पादन की कार्यवाही के लम्बित रहने के दौरान किया गया था, प्रतिरोध किया गया था या बाधा डाली गयी थी वहां वह निदेश देगा कि आवेदक को सम्पत्ति पर कब्जा दिलाया जाये और जहां इस पर भी कब्जा अभिप्राप्त करने में आवेदक का प्रतिरोध किया जाता है या उसे बाधा डाली जाती है वहां न्यायालय निर्णीत-ऋणी को उसके उकसाने पर या उसकी ओर से कार्य करने वाले व्यक्ति को ऐसी अवधि के लिये जो तीस दिन तक की हो सकेगी, सिविल कारागार में निरुद्ध किये जाने का आदेश भी आवेदक की प्रेरणा पर दे सकेगा।

नियम 99 डिक्रीदार या क्रेता द्वारा बेकब्जा किया जाना-

(1) जहां निर्णीत-ऋणी से भिन्न कोई व्यक्ति स्थावर सम्पत्ति पर कब्जे की डिक्री के धारक द्वारा या जहां ऐसी सम्पत्ति का डिक्री के निष्पादन में विक्रय किया गया है। वहां उसके क्रेता द्वारा ऐसा सम्पत्ति पर से बेकब्जा कर दिया गया हो। वहां वह ऐसे बेकब्जा किये जाने का परिवाद करते हुये न्यायालय से आवेदन कर सकेगा।

(2) जहां ऐसा कोई आवेदन किया जाता है। वहां न्यायालय उस आवेदन पर न्यायनिर्णयन इसमें अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अनुसार करने के लिये अग्रसर होगा।

नियम 100 बेकब्जा किये जाने का परिवाद करने वाले आवेदन पर पारित किया जाने वाला आदेश-
 नियम 101 में निर्दिष्ट प्रश्नों के अवधारण पर, न्यायालय ऐसे अवधारण के अनुसार,

(क) आवेदन को मंजूर करते हुये और यह निदेश देते हुये कि आवेदन को सम्पत्ति का कब्जा दे दिया जाये या आवेदन को खारिज करते हुये, आदेश करेगा, या

(ख) ऐसा अन्य आदेश पारित करेगा, जो वह मामले की परिस्थितियों में ठीक समझे।

नियम 101 अवधारित किये जाने वाले प्रश्न- 
नियम 97 या नियम 99 के अधीन किसी आवेदन पर किसी कार्यवाही के पक्षकारों के बीच या उसके प्रतिनिधियों के बीच पैदा होने वाले आवेदन के न्याय-निर्णयन से सुसंगत सभी प्रश्न (जिनके अन्तर्गत सम्पत्ति में अधिकार, हक या हित से सम्बन्धित प्रश्न भी हैं), आवेदन के सम्बन्ध में कार्यवाही करने वाले न्यायालय, द्वारा अवधारित किये जायेंगे, न कि पृथक वाद द्वारा और इस प्रयोजन के लिये न्यायालय, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी प्रतिकूल बात के होते हुये भी, ऐसे प्रश्नों का विनिश्चय करने की अधिकारिता रखने वाला समझा जायेगा।

नियम 102 वादकालीन अन्तरिती को इन नियमों का लागू न होना-
 नियम 98 और 100 में की कोई बात स्थावर संपत्ति के कब्जे को डिक्री के निष्पादन में उस व्यक्ति द्वारा किये गये प्रतिरोध या डाली गई बाधा को यी किसी व्यक्ति के बेकब्जा किये जाने को लागू नहीं होगी, जिसे निर्णीत-ऋणी ने वह सम्पत्ति उस वाद के जिसमें डिक्री पारित की गई थी, संस्थित किये जाने के पश्चात् अन्तरित की है।

स्पष्टीकरण- इस नियम में 'अन्तरण' के अन्तर्गत विधि के प्रवर्तन द्वारा अन्तरण भी है। 
नियम 103 आदेशों को डिक्री माना जाना- 
जहां किसी आवेदन पर न्याय निर्णयन नियम 98 या 100 के अधीन किया गया है। वहां उस पर किये गये आदेश का वही बल होगा और वह अपील या अन्य बातों के बारे में वैसी ही शर्तों के अधीन होगा मानों वह डिक्री हो।

समीर सिंह बनाम अब्दुल ख, ए. आई. आर. 2015 सु. को.  के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि एक प्रकार का आक्षेप डिक्री होल्डर द्वारा (आदेश 21 नियम 91, 100 और 103 के अधीन) किया गया है। यह आक्षेप खारिज कर दिया जाता है। इस आधार पर कि निष्पादन न्यायालय द्वारा हो गया है। इस प्रकार के आदेश को डिक्री नहीं माना जा सकता। याचिका अनुच्छेद 227 के अन्तर्गत कायम रखी जा सकती है।

नियम 104 नियम 101 या नियम 103 के अधीन आदेश लम्बित वाद के परिणाम के अधीन होगा-
 नियम 101 या 103 के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, उस कार्यवाही के जिसमें ऐसा आदेश किया जाता है, प्रारम्भ की तारीख को लम्बित किसी वाद के परिणाम के अधीन उस दशा में होगा, जिसमें उस वाद को ऐसे पक्षकार द्वारा जिसके विरुद्ध नियम 101 या 103 के अधीन आदेश किया जाता है। ऐसा अधिकार स्थापित करना चाहा गया है जिसका कि वह उस सम्पत्ति के वर्तमान कब्जे की बाबत दावा करता है।

नियम 105 आवेदन की सुनवाई - 
(1) वह न्यायालय जिसके समक्ष इस आदेश के पूर्वगामी नियमों में से किसी नियम के अधीन कोई आवेदन लम्बित है, उसकी सुनवाई के लिए दिन नियत कर सकेगा।

(2) जहाँ नियत दिन या किसी अन्य दिन तक सुनवाई स्थगित की जाये। मामले की सुनवाई के लिये पुकार होने पर आवेदक उपसंजात नहीं होता है वहां न्यायालय आदेश कर सकेगा कि आवेदन खारिज कर दिया जाए।

(3) जहां आवेदक उपसंजात होता है और विरोधी पक्षकार जिसको न्यायालय द्वारा सूचना दी गई है, उपसंजात नहीं होता है। वहां न्यायालय आवेदन को एकपक्षीय रूप से सुन सकेगा और ऐसा आदेश पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे।

स्पष्टीकरण - उपनियम (1) में निर्दिष्ट किसी आवेदन के अन्तर्गत नियम 58 के अधीन किया गया कोई दावा या आक्षेप भी हैं।

नियम 106 एकपक्षीय रूप से पारित आदेशों आदि का अपास्त किया जाना-
 (1) आवेदक जिसके विरुद्ध नियम 105 के उपनियम (2) के अधीन कोई आदेश किया जाता है अथवा विरोधी पक्षकार जिसके विरुद्ध उस नियम के उपनियम (3) के अधीन या नियम 23 के उपनियम (1) के अधीन कोई एकपक्षीय आदेश पारित किया जाता है, उस आदेश को अपास्त के लिये न्यायालय से आवेदन कर सकेगा और यदि वह न्यायालय का समाधान कर देता है कि आवेदन की सुनवाई के लिये पुकार होने पर उसके उपसंजात न होने के लिये पर्याप्त कारण था, तो न्यायालय खर्चो या अन्य बातों के बारे में ऐसे निबन्धनों पर जो वह ठीक समझे, आदेश अपास्त करेगा और आवेदन की आगे सुनवाई के लिये दिन नियत करेगा।

(2) उपनियम (1) के अधीन आवेदन पर कोई आदेश तब तक नहीं किया जायेगा, जब तक उस आवेदन की सूचना की तामील दूसरे पक्षकार पर न कर दी गई हो।

(3) उपनियम (1) के अधीन आवेदन आदेश की तारीख से तीस दिन के भीतर किया जायेगा या जहां एकपक्षीय आदेश, की दशा में सूचना की सम्यक रूप से तामील नहीं हुई थी वहां उस तारीख में जब आवेदक को आदेश की जानकारी हुई थी, तीस दिन के भीतर किया जायेगा।

पिल्लई बनाम साउथ इण्डियन बैंक लि. ए. आई. आर. 2005 सु. को. के वाद में कहा गया कि जब आदेश 21 नियम 105 के अन्तर्गत एक आवेदन व्यतिक्रम के कारण खारिज कर दिया गया है, वहां नियम 106 (3) के अन्तर्गत प्रत्यावर्तन के लिये आवेदन की समय सीमा आदेश की तिथि से प्रारंभ होगी न कि उससे संज्ञान में आने की तिथि से।



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