उच्चतम न्यायालय में अपील के संबंध (आदेश 45) (नियम 1-17)- सिविल प्रक्रिया संहिता


 उच्चतम न्यायालय में अपील के संबंध (आदेश 45) (नियम 1-17)-

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 45 में उच्चतम न्यायालय में अपील के संबंध में प्रावधान किया गया है।

उच्चतम न्यायालय में की जाने वाली अपीलों में प्रक्रिया -


नियम 1 डिक्री की परिभाषा-

 इस आदेश में, जब तक की विषय या सन्दर्भ में कोई बात विरुद्ध न हो, 'डिक्री' पद के अन्तर्गत अन्तिम आदेश भी आयेगा।

नियम 2 उस न्यायालय से आवेदन जिसकी डिक्री परिवादित है-

(1) जो कोई उच्चतम न्यायालय में अपील करना चाहता है वह उस न्यायालय में अर्जी द्वारा आवेदन करेगा जिसकी डिक्री परिवादित है।

(2) उपनियम (1) के अधीन हर अर्जी की सुनवाई यथासम्भव शीघ्रता से की जायेगी और आवेदन के निपटारे को उस तारीख से जिसकी वह अर्जी उपनियम (1) के अधीन न्यायालय में उपस्थित की जाती है, साठ दिन के भीतर समाप्त करने का प्रयास किया जायेगा।

नियम 3 मूल्य या औचित्य के बारे प्रमाण-पत्र-

 (1) हर अर्जी में अपील के आधार कथित होंगे और ऐसे प्रमाण-पत्र के लिये प्रार्थना होगी कि-

(1) मामले में सामान्य महत्व का सारवान् विधि-प्रश्न अन्तर्ग्रस्त है, तथा

(ii) न्यायालय की राय में उक्त प्रश्न का विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाना आवश्यक है।

(2) न्यायालय ऐसी अर्जी की प्राप्ति पर निदेश देगा कि विरोधी पक्षकार पर इस सूचना की तामील की जाये कि वह यह हेतुक दर्शित करे कि उक्त प्रमाण-पत्र क्यों न दे दिया जाये।

नियम 6 प्रमाण-पत्र देने से इन्कार का प्रभाव- 

जहां ऐसा प्रमाण-पत्र देने से इंकार कर दिया जाता है, वहां अर्जी खारिज की जायेगी।

नियम 7 प्रमाण-पत्र दिये जाने पर अपेक्षित प्रतिभूति और निक्षेप-

(1) जहां प्रमाण-पत्र दे दिया जाता है, तो याचिका परिवादित डिक्री की तिथि से 90 दिन या न्यायालय की अनुज्ञा से 60 दिन की अतिरिक्त अवधि के भीतर या प्रमाण-पत्र दिये जाने की तिथि से छः सप्ताह की अवधि, जो भी वाद की तिथि हो, के भीतर प्रत्यर्थी के खर्चों हेतु प्रतिभूति देगा तथा वाद के पूरे अभिलेख को अनुवाद कराने, अनुक्रमणिका तैयार करने, मुद्रण करने हेतु व्ययों को निक्षेपित करेगा।

नियम 8 अपील का ग्रहण और उस पर प्रक्रिया-

जहां न्यायालय को समाधान प्रद रूप में ऐसी प्रतिभूति दी गई है और निक्षेप कर दिया गया है, वहां न्यायालय- यह घोषित करेगा कि अपील ग्रहण कर ली गई है, उसकी सूचना प्रत्यर्थी को देगा, अभिलेख की प्रति न्यायालय की मुद्रा सहित उच्चतम न्यायालय को प्रेषित करेगा, तथा दोनों पक्षकारों में से किसी भी पक्षकार की वाद के कागजों में से किसी भी कागज की एक या अधिक अधिप्रमाणीकृत प्रतियों उसके आवेदन पर और उनकी तैयारी में हुए खचों के भुगतान पर देगा।

नियम 9 प्रतिभूति के प्रतिग्रहण का प्रतिसंहरण- 

न्यायालय अपील के ग्रहण किये जाने के पूर्व किसी भी समय हेतुक दर्शित किये जाने पर किसी ऐसी प्रतिभूति के प्रतिग्रहण का प्रतिसंहरण कर सकेगा और उसके बारे में अतिरिक्त निदेश दे सकेगा।

नियम 9 'क' मृत पक्षकारों की दशा में सूचना दिये जाने से अभिमुक्ति देने की शक्ति-
इन नियमों की किसी भी बात के बारे में जो विरोधी पक्षकार या प्रत्यर्थी पर किसी भी सूचना की तामील या किसी सूचना का उसे दिया जाना अपेक्षित करती है यह नहीं समझा जायेगा कि वह मृत विरोधी पक्षकार या मृत प्रत्यर्थी के विधिक प्रतिनिधि पर किसी सूचना की तामील या उसे ऐसी किसी सूचना का दिया जाना उस दशा में भी अपेक्षित करती है जिसमें ऐसा विरोधी पक्षकार या प्रत्यर्थी उस न्यायालय में जिसकी डिक्री परिवादित है, सुनवाई के समय या उस न्यायालय की डिक्री के पश्चात्वर्ती किन्हीं कार्यवाहियों में उपसंजात नहीं हुआ है-

परन्तु,

नियम 3 के उपनियम (2) के अधीन और नियम 8 के अधीन सूचनायें उस जिले के न्यायाधीश के न्याय-सदन में जिस जिले में वाद मूलतः लाया गया था, किसी सहज दृश्य स्थान में लगा कर दी जायेगी और ऐसे समाचार-पत्रों में जो न्यायालय निर्दिष्ट करे, प्रकाशन द्वारा दी जायेगी।

नियम 10 अतिरिक्त प्रतिभूति या संदाय का आदेश देने की शक्ति-
जहां अपील के ग्रहण किये जाने के पश्चात् किन्तु यथापूर्वोक्त के सिवाय अभिलेख की प्रति उच्चतम न्यायालय को पारेषित किये जाने के पूर्व किसी भी समय ऐसी प्रतिभूति अपर्याप्त प्रतीत हो,

अथवा

यथापूर्वोक्त के सिवाय अभिलेख के अनुवाद कराने, अनुलिपि कराने, मुद्रण, अनुक्रमणिका तैयार करने या उसके प्रति का पारेषण करने के प्रयोजन के लिये अतिरिक्त संदाय अपेक्षित हो,

वहाँ न्यायालय अपीलार्थी को आदेश दे सकेगा कि वह अन्य और पर्याप्त प्रतिभूति उस समय के भीतर दे जो न्यायालय द्वारा नियत किया जायेगा और उतने ही समय के भीतर वह संदाय करे जो अपेक्षित है।

नियम 11 आदेश का अनुपालन करने में असफलता का प्रभाव - 
जहां अपीलार्थी ऐसे आदेश का अनुपालन करने में असफल रहता है, वहां कार्यवाहियों रोक दी जायेंगी,

और अपील में उच्चतम न्यायालय के इस निमित्त आदेश के बिना आगे कार्यवाही नहीं की जायेगी, और जिस डिक्री की अपील की गयी है उसका निष्पादन इस बीच नहीं रोका जायेगा।

नियम 12 निक्षेप की बाकी की वापसी- 
जब यथापूर्वोक्त के सिवाय अभिलेख की प्रति उच्चतम न्यायालय को पारेषित कर दी गयी तब अपीलार्थी नियम 7 के अधीन उसके द्वारा निक्षेप की गयी रकम की बाकी को, यदि कोई हो वापस ले सकेगा।

नियम 13 अपील लम्बित रहने तक न्यायालय की शक्तियां

जब तक न्यायालय अन्य का निर्देश न दे उस आज्ञप्ति का जिसकी अपील की गई है, बिना शर्त निष्पादन किसी अपील के ग्रहण के लिए प्रमाण-पत्र दे दिये जाने पर भी किया जायेगा। यदि न्यायालय ठीक समझे, तो ऐसे विशेष कारण से जो वाद के किसी हितबद्ध पक्षकार द्वारा दर्शित किया गया हो तो न्यायालय को अन्यथा प्रतीत हुआ हो-

(i) विवादित किसी भी जंगम सम्पत्ति को या उसके किसी भाग को परिषद्ध कर सकेगा, या

(i) प्रत्यर्थी से उचित प्रतिभूति लेकर अपील की गई आज्ञप्ति को निष्पादन करने की अनुज्ञा दे सकेगा, या

(ii) अपीलार्थी से उचित प्रतिभूति लेकर अपील की गई आज्ञप्ति को निष्पादित करने से रोक, सकेगा, या

(iv) सम्पत्ति के लिये प्रापक नियुक्त कर सकेगा।

नियम 14 अपर्याप्त पाये जाने पर प्रतिभूति का बढ़ाया जाना-

(1) जहां दोनों में से किसी भी पक्षकार द्वारा दी गयी प्रतिभूति अपील के लम्बित रहने के दौरान में किसी भी समय अपर्याप्त प्रतीत हो वहां न्यायालय दूसरे पक्षकार के आवेदन पर अतिरिक्त प्रतिभूति अपेक्षित कर सकेगा।

(2) न्यायालय द्वारा यथा अपेक्षित प्रतिभूति के दिये जाने में व्यतिक्रम होने पर-

(क) उस दशा में जिसमें मूल प्रतिभूति अपीलार्थी द्वारा दी गयी थी, न्यायालय उस डिक्री का जिसकी अपील की गयी है, निष्पादन प्रत्यर्थी के आवेदन पर ऐसे कर सकेगा मानों अपीलार्थी ने ऐसी प्रतिभूति न दी हो,

(ख) उस दशा में जिसमें मूल प्रतिभूति द्वारा दी गयी थी, न्यायालय डिक्री का अतिरिक्त निष्पादन, जहां तक सम्भव हो सके, रोक देगा और पक्षकारों को उसी स्थिति में ले आयेगा जिसमें वे उस समय थे जब वह प्रतिभूति दी गयी थी जो अपर्याप्त प्रतीत होती है या अपील की विषय-वस्तु की बाबत ऐसा निदेश देगा जो वह ठीक समझे।

नियम 15 उच्चतम न्यायालय के आदेश को प्रवृत्त कराने की प्रक्रिया जो व्यक्ति

अपील में उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आज्ञप्ति या आदेश का निष्पादन कराना चाहता है। उस आदेश या आज्ञप्ति की प्रमाणित प्रति के साथ उस न्यायालय में आवेदन करेगा, जिसकी अपील उच्चतम न्यायालय में की गई थी। ऐसा न्यायालय जिसमें आवेदन किया गया है, उस आज्ञप्ति या आदेश को उस न्यायालय को प्रेषित करेगा, जिसने पहली आज्ञप्ति पारित की थी या ऐसे अन्य न्यायालय को प्रेषित करेगा, जिसे उच्चतम न्यायालय ने आदेश या आज्ञप्ति में निर्दिष्ट किया है। वह न्यायालय, जिसे ऐसी आज्ञप्ति या आदेश प्रेषित किया गया है, उसका निष्पादन उस रीति से और उन उपबन्धों के अनुसार करेगा जो उसकी अपनी मूल आज्ञप्ति के निष्पादन को लागू होते हैं।

किशन स्वरूप शर्मा बनाम मे. महकल आटोमोबाइल्स, ए. आई. आर. 2009 (एन. ओ. सी.) (ए.पी.) के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णीत किया कि आदेश 45 नियम 15 में उल्लिखित प्रावधान वहां लागू नहीं होते हैं, जहां पक्षकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशनों की पूर्ति कर रहा हो।

नियम 16 निष्पादन सम्बन्धी आदेश की अपील- 
उच्चतम न्यायालय की डिक्री या आदेश का निष्पादन जो न्यायालय करता है। उस न्यायालय द्वारा ऐसे निष्पादन के सम्बन्ध में किये गये आदेश उसी रीति से और उन्हीं नियमों के अधीन अपीलनीय होंगे जिस रीति से और जिसके अधीन उस न्यायालय की अपनी डिक्रियों के निष्पादन सम्बन्धी आदेश अपीलनीय होते हैं।


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