धारा-43 प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी, मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी (धारा 44)-
धारा-43 प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी
धारा 43 के अन्तर्गत, प्राइवेट व्यक्ति निम्नलिखित व्यक्तियों को गिरफ्तार कर सकता है, या करवा सकता है-
(1) ऐसे व्यक्ति को जो उसकी उपस्थिति में अजमानतीय और संज्ञेय अपराध करता है, या
(2) जब वह उद्घोषित अपराधी हो।
ऐसा व्यक्ति ऐसे गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को अनावश्यक विलम्ब के बिना पुलिस अधिकारी के हवाले कर देगा। यदि पुलिस अधिकारी अनुपस्थित है तो ऐसे व्यक्ति को निकटतम पुलिस थाने ले जायेगा या भिजवाएगा।
गौरी प्रसाद बनाम चार्टर्ड बैंक ऑफ इंडिया ए. आई. आर. 1925 कलकत्ता के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि यह आवश्यक नहीं है कि गिरफ्तार करने वाला प्राइवेट व्यक्ति संज्ञेय तथा अजमानतीय अपराध कारित होते समय भौतिक रूप से घटना स्थल पर उपस्थित हो। यदि उसके समक्ष अपराध किया जाता है, तो वह ऐसे अपराधी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा भी गिरफ्तार करवा सकता है।
मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी (धारा 44)-
कोई मजिस्ट्रेट चाहे न्यायिक हो या कार्यपालक अपने क्षेत्र में निम्नलिखित परिस्थितियों में उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है या करा सकता है-
(1) जिसने उसकी उपस्थिति में संज्ञेय या असंज्ञेय अपराध किया है। यदि वह अपराध ऐसा है कि परिवाद के बिना उसका संज्ञान नहीं किया जा सकता तो भी इस धारा के अन्तर्गत गिरफ्तार कर सकता है। गिरफ्तारी के बाद या तो जेल भेज देगा या यदि उसकी जमानत हो सकती है तो जमानत लेकर छोड़ देगा। (2) जिस व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए वह वारण्ट निकाल सकता है और जो उसके समक्ष उपस्थित है।
शैलजा नन्द पाण्डेय बनाम सुरेश चन्द्र गुप्ता ए. आई. आर. 1969 पटना के वाद में कहा गया कि इस धारा के अन्तर्गत की जाने वाली गिरफ्तारी की कार्यवाही एक प्रशासकीय तथा न्यायपालिक कार्य है। तथापि किसी कानूनी कार्यवाही के लंबित रहने की दशा में गिरफ्तारी की इस शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।
अनैश कुमार बनाम बिहार राज्य 2014 के वाद में कहा गया कि दहेज के अपराध के आरोप के प्रत्येक मामले में गिरफ्तारी आवश्यक नहीं। संशोधित धारा 41 एवं 41 'A' के अनुपालन हेतु पूरे देश के लिये सामान्य दिशा निर्देश जारी।
मजिस्ट्रेट द्वारा इस धारा के अधीन गिरफ्तारी संबंधी शक्ति का प्रयोग अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर ही किया जा सकता है।
उदाहरणार्थ-
यदि एक मजिस्ट्रेट उपखण्ड 'अ' पर अपना क्षेत्राधिकार रखता है किन्तु उसका न्यायालय उपखंड 'ब' के परिक्षेत्र में है, तो ऐसी दशा में वह उपखंड 'ब' के अधीन गिरफ्तारी संबंधी अधिकारिता का प्रयोग नहीं कर सकता है।
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