पुलिस अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तारी-


पुलिस अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तारी-

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41, 42, 60 (2), 109, 110, 123 (6), 151 (1), 432 (3) में पुलिस अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना, मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की दशाओं का उल्लेख है।

(1) धारा 41 के अन्तर्गत कोई पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और वारण्ट के बिना किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है-

[संशोधन 2008: धारा 41 (1) (क) (ख)] (1-11-2010 से प्रभावी)

(क) जो पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में संज्ञेय अपराध करता है।

(ख) जिसके विरुद्ध कोई युक्तियुक्त परिवाद किया गया है, या विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हुई है कि उसने ऐसे कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की हो सकेगी, या सात वर्ष तक हो सकेगी, चाहे वह जुर्माने सहित हो या रहित, दंडनीय संज्ञेय अपराध किया है।

(ख क) जिसके विरुद्ध विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हुई है कि उसने ऐसे कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष से अधिक हो सकेगी, चाहे वह जुर्माने सहित हो या रहित, अथवा मृत्यु दंडादेश से दंडनीय संज्ञेय अपराध किया है और पुलिस अधिकारी के पास उस जानकारी के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे व्यक्ति ने उक्त अपराध किया है।

(ग) जो इस संहिता के अधीन या राज्य सरकार द्वारा उद्घोषित अपराधी हो।

(घ) जिसके कब्जे में कोई ऐसी चीज पायी जाती है जिसको चुराई हुई सम्पत्ति होने का उचित रूप से सन्देह किया जा सकता है और जिस पर ऐसी चीज के बारे में अपराध करने का उचित रूप से सन्देह किया जा सकता है।

(ङ) जो पुलिस अधिकारी के कर्तव्य निर्वहन में बाधा पहुंचाये या ऐसे पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा से भागा हो।

(च) जिस पर संघ के सशस्त्र बलों में से किसी से अभित्याजक होने का उचित सन्देह है।

(छ) ऐसा व्यक्ति जिसने भारत के बाहर कोई अपराध कारित किया हो जो यदि भारत में करता तो दण्डनीय अपराध होता।

 (ज) छोड़ा गया दोषसिद्ध व्यक्ति जो संहिता की धारा 356 (5) के नियमों का उल्लंघन किया हो।

(झ) ऐसा व्यक्ति जिसे अन्य थाने के पुलिस अधिकारी ने गिरफ्तार करने की लिखित या मौखिक अध्यपेक्षा की हो।

(2) धारा 42 के अन्तर्गत जो पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय अपराध करता है और ऐसे अधिकारी की मांग पर नाम व पता बताने से इन्कार करता है।

(3) धारा 60 (2) के अनुसार, यदि कोई विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागता है, या छुड़ा लिया जाता है, तो पुलिस अधिकारी वारण्ट के बिना उसे गिरफ्तार कर सकता है।

(4) धारा 109 या 110 के प्रवर्गों में से किसी एक के अन्तर्गत आता है।

(5) संहिता की धारा 123 (1) के अन्तर्गत जब कोई व्यक्ति प्रतिभू देने में विफल रहने पर सशर्त उन्मोचित किया जाता है और यदि ऐसी शर्त का उल्लंघन करता है तो ऐसे व्यक्ति को धारा 123 (6) के अन्तर्गत बिना वारण्ट के गिरफ्तार किया जा सकता है।

(6) संहिता की धारा 151 (1) के अन्तर्गत संज्ञेय अपराध की योजना बना रहे व्यक्ति को पुलिस अधिकारी बिना वारण्ट के गिरफ्तार कर सकता है।

(7) संहिता की धारा 432 (3) के अन्तर्गत समुचित सरकार किसी व्यक्ति के विरुद्ध पारित दण्डादेश सशर्त या बिना शर्त के निलम्बन या परिहार के आदेश को निरस्त करती है, वहाँ किसी पुलिस अधिकारी द्वारा बिना वारण्ट गिरफ्तार किया जा सकता है।

 जोगिन्दर बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. 1994 एस.सी.सी. एवं स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम क्रिशचन कम्युनिटी वेलफेयर काउंसिल ऑफ इंडिया 2004 क्रि.लॉ.ज. (SC) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने सम्प्रेक्षण किया, "हर मामले में गिरफ्तारी आवश्यक नहीं होती। मात्र इसलिए ही कोई गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए कि वैसा किया जाना पुलिस ऑफिसर के लिए विधिपूर्ण है गिरफ्तार करने की शक्ति का होना एक बात है और उसके प्रयोग किए जाने का औचित्य होना बिल्कुल ही दूसरी बात है। वैसा कर सकने की उसकी शक्ति होने से पृथक, पुलिस ऑफिसर को गिरफ्तारी न्यायानुमत साबित कर सकने के योग्य होना चाहिए। किसी व्यक्ति के विरुद्ध किसी अपराध किए जाने के मात्र अभिकथन के ही आधार पर उसे यूँ ही गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए। गिरफ्तार करने वाले आफिसर की राय में इस बात का कोई युक्तियुक्त औचित्य होना चाहिए कि वह गिरफ्तारी आवश्यक और न्यायानुमत थी। जघन्य अपराधों को छोड़कर गिरफ्तार करने से बचना चाहिए।"

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