उदघोषणा और कुर्की जारी करने की शक्ति, उसके विस्तार, क्षेत्र और सीमा(सीआरपीसी 82 से 86)-

उदघोषणा और कुर्की जारी करने की शक्ति, उसके विस्तार, क्षेत्र और सीमा(सीआरपीसी 82 से 86)-

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 से 86 तक उद्‌घोषणा एवं सम्पत्ति की कुर्की संबंधित प्रावधानों के बारे में उल्लेख किया गया है।

गिरफ्तारी का वारण्ट जारी करने का मुख्य उद्देश्य सम्बन्धित व्यक्ति को गिरफ्तार कर न्यायालय  के समक्ष पेश करना होता है। ऐसे वारंण्ट का निष्पादन करने वाले व्यक्ति अथवा अधिकारी का  कर्तव्य होता है कि वह उस वारण्ट का सम्यक तत्परता से निष्पादन करने का प्रयास करें। लेकिन कभी-कभी सम्यक तत्परता के बावजूद भी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है

क्योंकि-

(1) ऐसा व्यक्ति वारंट के निष्पादन को असफल बनाने के लिए या तो फरार हो जाता है, या

(2) फिर अपने को छिपाये रखता है।

इन दोनों ही अवस्थाओं में धारा 82 के अन्तर्गत न्यायालय इस आशय की एक उद्‌घोषणा प्रकाशित कर सकता है कि वह व्यक्ति एक विनिर्दिष्ट स्थान में और विनिर्दिष्ट समय पर, जो उद्‌घोषण के प्रकाशन की तिथि से तीस दिन से कम का नहीं होगा, उपस्थित हो।

उ‌द्घोषणा का प्रकाशन-

ऐसी उदघोषणा-

(1) (i) उस नगर या ग्राम के, जिसमें ऐसा व्यक्ति साधारणतया निवास करता हो, किसी सहज
दृश्य स्थान में सार्वजनिक रूप से पढ़ी जायेगी।

(ii) उस गृह या निवास स्थान के, जिसमें ऐसा व्यक्ति साधारणतया निवास करता हो, कि सहज दृश्य भाग पर या ऐसे नगर या ग्राम के किसी सहज दृश्य स्थान पर लगायी जायेगी,

(iii) उसकी एक प्रति उस न्यायालय सदन के किसी सहज दृश्य भाग पर लगायी जायेगी।

(2) यदि न्यायालय उचित समझे तो इस उदघोषणा एक प्रति उस स्थान में, जहाँ ऐसा व्यक्ति साधारणतया निवास करता है, परिचालित किसी दैनिक समाचारपत्र में प्रकाशित की जा सके

सुखदेव सिंह सोधी बनाम पेप्सु न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ए. आई.आ 1954 एस. सी.  के वाद में कहा गया कि इस धारा के उपबंध न्यायालय की अवमानना के कार्यवाहियों में प्रयुक्त नहीं होंगे।

श्रीमती वी. जी. पेटरसन बनाम ओ. बी. फोरबेस ए. आई. आर. 1963 एस. के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि धारा 82 का प्रयोग ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति के लिए
नहीं किया जा सकेगा जिस पर न्यायालय की अवमानना कारित करने का दोषारोपण है। 

फरार व्यक्ति की संपत्ति की कुर्की-

 गिरफ्तारी के वारण्ट से बचने के लिए फरार हुए
व्यक्ति की सम्पत्ति की कुर्की के बारे में प्रावधान संहिता की धारा 83 में किया गया है-

धारा 82 के अन्तर्गत उद्‌घोषणा जारी करने वाला न्यायालय ऐसी उद्‌घोषणा के पश्चात् किसी भी समय उद्‌घोषित व्यक्ति की चल अथवा अचल दोनों प्रकार की सम्पतियों की कुकी का आदेश सकता है लेकिन घोषणा जारी करने वाली न्यायालय ऐसी घोषणा जारी करने के साथ-साथ ही कुर्की  का आदेश दे सकेगा। यादि शपथपत्र द्वारा या अन्यथा उसका का यह समाधान हो जाता है कि वह  व्यक्ति जिसके संबंध में उद्‌घोषणा निकाली जाने वाली है-

(1) अपनी समस्त सम्पत्ति या उसके किसी भाग का व्ययन करने वाला है, या

(2) अपनी समस्त सम्पत्ति या उसके किसी भाग को उस न्यायालय की स्थानीय सीमाओं से हटाने वाला है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सम्पत्ति की कुर्की का आदेश उदघोषणा  के पश्चात् अथवा उसके साथ-साथ दिया जा सकेगा। (भाईलाल ILR 29 कलकत्ता)

सम्पत्ति की कुर्की करने की रीतियाँ -

धारा 83 की उपधारा (3) (4) के अन्तर्गत उ‌दघोषित व्यक्ति की चल अथवा अचल दोनों प्रकार की सम्पत्तियों की कुर्की की जा सकती है। इसमें ऐसी समन की कुर्की की रीतियों का उल्लेख किया गया है -

चल सम्पत्ति की कुर्की - धारा 83 (3) के अनुसार-

(1) अभिग्रहण द्वारा, या

(2) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा, या

(3) उ‌दघोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी उस सम्पत्ति का किराया देने या उस सम्पत्ति का परिदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जा सकेगी।

अचल सम्पत्ति की कुर्की - धारा 83 (4) के अनुसार -

(1) राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा में उस जिले के कलेक्टर के माध्यम से, एवं

(ii) अन्य सभी अवस्थाओं में

(क) कब्जा लेकर, या

(ख) रिसीवर की नियुक्ति कर, या

(ग) उदघोषित व्यक्ति को अथवा उसके निमित्त किसी को भी उस सम्पत्ति का किराया देने या उस सम्पत्ति का परिदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जा सकेगी।

जीव धन अथवा विनश्वर प्रकृति की सम्पत्ति की कुर्की -

 धारा 83 (5) में जीव धन एवं विनश्वर प्रकृति की सम्पत्ति की कुर्की के बारे में प्रावधान किया गया है।

जब कुर्क की जाने वाली सम्पत्ति जीव धन अथवा विनश्वर प्रकृति की हो तो न्यायालय यदि यह समीचीन समझे उसके तुरंत विक्रय का आदेश दे सकेगा। ऐसे विक्रय से प्राप्त आगम न्यायालय के आदेश के अधीन रहेंगे।

बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य ए. आई. आर. 1982 एन. ओ. सी.  (पंजाब) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि फरार व्यक्ति की सम्पत्ति की कुर्की केवल जीवनकाल तक के लिए ही सीमित नहीं होती है अपितु उसकी मृत्यु के पश्चात् भी उसके दायाद या उत्तराधिकारी ऐसी सम्पत्ति में अपने हित का दावा नहीं कर सकते हैं।

धारा 84 कुर्की के बारे में दावे और आपत्तियाँ - 

(1) धारा 83 के अन्तर्गत कुर्क की सम्पत्ति के बारे में कोई भी ऐसा व्यक्ति दावा कर सकता है जो उदघोषण व्यक्ति से भिन्न है और जिसका कि उस सम्पत्ति में हित है। दावा अथवा आपत्ति कुर्क किए जाने की तिथि से 6 माह के भीतर किया गया है, तो दावेदार या आपत्तिकर्ता की मृत्यु हो जाने की दशा में दावे अथवा आपत्ति को उसके विधिक प्रतिनिधि द्वारा चालू रखा जा सकता है।

 (2) उदघोषित व्यक्ति की सम्पत्ति की कुर्की के विरुद्ध कोई
भी दावा या आपत्ति उसी न्यायालय में दायर की जा सकती है जिसके द्वारा कुर्की का आदेश जारी किया गया है। जहाँ कुर्की का आदेश धारा 83 (2) के अधीन पृष्ठांकित आदेश के अन्तर्गत किया गया है, तो दावा अथवा आपत्ति उस जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में की जाएगी जिसमें कुर्की की गई है। 

(3) कुर्की के विरुद्ध कोई दावा या आपत्ति दाखिल किये जाने पर उसकी जांच उसी न्यायालय की जाएगी। किन्तु यदि आपत्ति या दावा 83 (2) के अधीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में किया गया है, तो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट उसे निस्तारण हेतु अपने किसी अधीनस्थ मजिस्ट्रेट को भेज सकता है। न्यायालय द्वारा की गई जांच के बाद इस तरह के दावे या आपत्ति को अंशतः या भागतः मंजूर या नामंजूर किया जा सकता है। उसे नामंजूरी के आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर उस अधिकार को सिद्ध करने के लिए जिसका दावा विवादग्रस्त सम्पत्ति के बारे में किया गया है। वाद संस्थित करके विवादग्रस्त बनाया जा सकता है परंतु नामंजूरी का आदेश ऐसे वाद के किसी परिणाम के अधीन रहते हुए निश्चायक माना जायेगा।

धारा-85 कुर्क की हुई सम्पत्ति को निर्मुक्त करना, विक्रय और वापस करना -

 इस धारा में यह उपबन्ध किया गया है कि कुर्क की हुई सम्पत्ति को कब निर्मुक्त किया जा सकता है, कब उसका विक्रय किया जा सकता है और कब उसे वापस किया जा सकता है।

कुर्क की हुई सम्पत्ति की निर्मुक्ति -

 न्यायालय सम्पत्ति को कुर्की से निर्मुक्त करने का
आदेश तब दे सकता है जब उदघोषित व्यक्ति  उदघोषणा में विनिर्दिष्ट समय के अन्दर हाजिर हो जाय। 

कुर्क की हुई सम्पत्ति का विक्रय-  

यदि उदघोषित व्यक्ति उदघोषणा में विनिर्दिष्ट समय के भीतर हाजिर नहीं होता है तो कुर्क सम्पत्ति राज्य सरकार के व्ययनाधीन हो जाती है और राज्य सरकार ऐसी सम्पत्ति का विक्रय-

(i) कुर्की की तारीख से छह मास का अवसान हो जाने पर, तथा

(ii) धारा 84 के अधीन किये गये दावे या आपत्ति का निपटारा हो जाने पर कर सकती है। 

अपवाद-

परन्तु यदि कुर्क की गई सम्पत्ति-
(i) शीघ्रतया और प्रकृत्या क्षयशील है, या (ii) न्यायालय के विचार में सम्पत्ति का विक्रय कर देना स्वामी के लिये फायदेमन्द होगा, तो न्यायालय अपने विवेक से सम्पत्ति की बिक्री करा सकता है।

कुर्क की हुई सम्पत्ति की वापसी -
कुर्क की गई सम्पत्ति उदघोषित व्यक्ति के लिए केवल दो वर्ष तक ही सुरक्षित रखी जा सकती है। ऐसा व्यक्ति यदि कुर्की की तारीख से दो वर्ष के अन्दर -

(i) उस न्यायालय के समक्ष, जिसके आदेश से वह सम्पत्ति कुर्क की गई थी, अथवा

( ii) उस न्यायालय के समक्ष, जिसके ऐसा न्यायालय अधीनस्थ है-

स्वेच्छा से हाजिर हो जाता है या पकड़ कर लाया जाता है और उस न्यायालय को समाधानप्रद रूप में साबित कर देता है कि-

(i) वह वारण्ट के निष्पादन से बचने के प्रयोजन से फरार नहीं हुआ था या छिपा नहीं था, और यह कि

(ii)  उसे उदघोषणा की ऐसी सूचना नहीं मिली थी जिससे वह उसमें विनिर्दिष्ट समय के अन्दर हाजिर हो सकता हो तो ऐसे विक्रय के शुद्ध आगमों का, या यदि उसका केवल कुछ भाग विक्रय किया गया है तो ऐसे विक्रय के शुद्ध आगमों और अवशिष्ट सम्पत्ति का, कुर्की के परिणामस्वरूप हुये समस्त खर्चों को उसमें से घटाकर उसे दे दिया जाएगा।

धारा 86 कुर्क सम्पत्ति की वापसी के लिए आवेदन नामंजूर करने वाले आदेश से अपील - 
इस धारा के उपबंधों के अनुसार धारा 85 (3) में निर्दिष्ट किया गया कोई भी व्यक्ति जो सम्पत्ति या उसके विक्रय के आगमों के परिदान की इन्कारी से पीड़ित है, उक्त अगले न्यायालय में अपील कर सकता है जिसमें इंकार करने वाले न्यायालय के फैसलों के विरुद्ध साधारणतः अपील की जाती है।

क्वीन इम्परर बनाम सुब्रह्मनियम आई. एल. आर.  मद्रास के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि धारा 85 के अधीन दिया गया आदेश पुनरीक्षण योग्य है अतः उसका पुनरीक्षण (Review) उच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकेगा।

प्रश्न- 

उदघोषणा और कुर्की जारी करने की शक्ति, उसके विस्तार, क्षेत्र और सीमाओं का विधिक प्रावधानों और न्यायिक निर्णयों की सहायता से विवेचना कीजिए।

कुर्क की गयी सम्पत्ति को किन दशाओं में निर्मुक्त, विक्रय अथवा वापस किया जा सकता है?

फरार व्यक्ति के लिए की जाने वाली उ‌दोषणा (Proclamation) एवं सम्पत्ति की कुर्की (Attachment) संबंधी विधि को समझाइये।

जब एक अभियुक्त के विरुद्ध वारंट निष्पादित न हो तो न्यायालय के समक्ष उसकी उपस्थिति हेतु उसे बाध्य करने के लिए अगली कार्यवाही क्या है?

दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत उदोषणा फरार व्यक्ति की सम्पत्ति की कुर्की के उपबन्धों की चर्चा करें।











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