समन' से आप क्या समझते हैं? समन के प्रारूप की अपेक्षित बातें बताते हुए उसकी तामील की रीतियों का उल्लेख कीजिए।
समन' से आप क्या समझते हैं? समन के प्रारूप की अपेक्षित बातें बताते हुए उसकी तामील की रीतियों का उल्लेख कीजिए।
किसी भी स्वस्थ विचारण के लिये यह आवश्यक है कि उससे संबंधित सभी कार्यवाहियाँ अभियुक्त की उपस्थिति में हो। इसका कारण यह है कि अभियुक्त को प्रतिरक्षा का पूर्ण अवसर प्रदान करना ही आपराधिक न्याय प्रशासन का प्रमुख उद्देश्य है। मामले के विचारण के समय यदि अभियुक्त न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है, तो उसकी उपस्थिति समन के द्वारा सुनिश्चित की जाती है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 61 में समन का प्रारूप एवं धारा 62 से 69 तक समन की तामील की विभिन्न रीतियों का उल्लेख किया गया है।
समन' की परिभाषा-
समन एक ऐसा आदेश होता है जो किसी व्यक्ति को एक निश्चित तिथि, समय एवं स्थान पर उपस्थित होने के लिए दिया जाता है।
समन में निम्नलिखित दो बातों को सम्मिलित किया जाता है-
(i) समय, स्थान एवं तिथि तथा
(ii) अपराध की प्रकृति
समन का प्रारूप -
संहिता की धारा-61 के अनुसार, समन के लिए निम्नांकित बातें आवश्यक हैं-
(1) यह लिखित होना चाहिए।
(2) यह दो प्रतियों में होना चाहिए।
(3) यह हस्ताक्षरित होना चाहिए।
(4) उस पर न्यायालय की मुद्रा अंकित की जानी चाहिए।
इस प्रकार समन न्यायालय में उपस्थिति का एक सहज, साधारण एवं प्रथम माध्यम है।
समन तामील की रीतियाँ -
धारा 62 से 69 तक में समन की तामील की विभिन्न रीतियों का उल्लेख किया गया है-
(1) व्यक्तिगत तामील (Personal Service) धारा 62 के अन्तर्गत तामील की जिस रीति का उल्लेख किया गया है, उसे व्यक्तिगत तामील कहते हैं। समन की तामील का यह सबसे अच्छा एवं उपर्युक्त तरीका है। इसके अनुसार-
(1) प्रत्येक समन की तामीली पुलिस अधिकारी द्वारा, या
राज्य सरकार द्वारा निर्मित नियमों के अधीन समन जारी करने वाले न्यायालय के (i) किसी अधिकारी द्वारा, या (ii) किसी अन्य लोक सेवक द्वारा की जायेगी।
(2) समन की तामीली यथासंभव अभियुक्त को निजी रूप से समन की एक प्रतिलिपि देकर की जाएगी।
(3) यदि तामील करने वाला अधिकारी यह अपेक्षा करे, तो समन में नामित व्यक्ति समन की दूसरी प्रति के पृष्ठ भाग पर रसीद के रूप में अपने हस्ताक्षर कर देगा।
दुर्गा दास रथिक बनाम उमेश चन्द्र सेन कलकत्ता के वाद में विनिश्चित किया गया कि यदि आपराधिक मामले में समन की तामीली पक्षकार के वकील पर की जाती है, तो ऐसी तामीली समुचित नहीं मानी जाएगी।
क्वीन एक्प्रेस बनाम कृष्णगोविन्द दास आई. एल. आर. कलकत्ता के वाद में कहा गया कि समन के लेने से इंकार करने अथवा उसकी अभिप्राप्ति से इंकार करने को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 173 के अन्तर्गत अपराध नहीं माना गया है।
(2) निगमित निकायों (Corporate Bodies) और समितियां (Committees) पर समन की तामील-
जब कोई समन किसी निगमित निकाय अथवा समिति के नाम जारी किया जाय तो धारा 63 के अनुसार उसकी तामील-
(i) निगम के सचिव,
(ii) स्थानीय प्रबन्धक, या
(iii) अन्य प्रधान अधिकारी पर की जा सकेगी।
ऐसे समन की तामील निगम के भारत में के मुख्य अधिकारी के पते से रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा भेजे गये पत्र द्वारा भी की जा सकेगी।
(3) जब समन किए गए व्यक्ति न मिल सकें तब तामील (विकसित तामील) (Extended Service)-
धारा 64 के अनुसार, जब समन तामीली अधिकारी द्वारा सम्यक तत्परता बरती जाने के बाद भी समन किये गये व्यक्ति न मिल सकें। ऐसी दशा में समन की तामीली उस व्यक्ति के परिवार के किसी ऐसे वयस्क पुरुष पर व्यक्तिगत रूप से की जा सकेगी जो उसके साथ रहता है। ऐसे पुरुष वयस्क सदस्य को समन की एक प्रति देकर दूसरी प्रति के पिछले भाग पर उसके हस्ताक्षर लिए जाएंगे।
स्पष्टीकरण -
'सेवक' इस धारा के अर्थ में कुटुम्ब का सदस्य नहीं है।
(4) प्रतिस्थापित तामील (Substituted Service) - धारा 65 में समन की तामील की एक ऐसी रीति का उल्लेख किया गया है जिसका उपयोग उस समय किया जाता है जबकि तामील की उपर्युक्त तीनों रीतियों में से किसी के अन्तर्गत समन की तामील नहीं की जा सकी हो। ऐसी अवस्था में समन की तामील समन की एक प्रति उस व्यक्ति के निवास स्थान पर ऐसी जगह लगाकर की जा सकेगी जो सहज ही देखने में आ सके।
राजेश कुमार बनाम प्रेमशंकर 1988 इला. क्रि. के. के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि मजिस्ट्रेट ने चस्पा तामीली के बाबत इस प्रकार की जांच नहीं की है, तो उस स्थिति में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 (3) के अधीन पारित किये गये अंतिम आदेश को अपास्त किये जाने योग्य माना जाएगा।
(5) सरकारी सेवक पर तामील (Service on Government Servants) -
धारा-66 के अनुसार, जब समन ऐसे व्यक्ति के नाम पर जारी किया गया हो जो किसी सरकार की सक्रिय सेवा में है तो न्यायालय ऐसे समन की दो प्रतियाँ उस कार्यालय के प्रधान को भेजेगा जिसके अधीनस्थ वह व्यक्ति कार्य कर रहा है। ऐसी प्रतियाँ मिलने पर वह प्रधान उस व्यक्ति पर वैयक्तिक रूप से समन की तामील करायेगा एवं उसकी एक प्रति न्यायालय को लौटा देगा। ऐसी तामील हस्ताक्षर एवं पृष्ठांकन करके की जायेगी।
ब्रजबल्लभ बनाम ए. आर. खाँ 1958 राजस्थान के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि यदि कार्यालय अधीक्षक इस तरह से जारी किये गये समन की तामीली को लेने से इंकार करता है, तो उसे न्यायालय के अवमानना का दोषी माना जाएगा।
(6) स्थानीय सीमाओं के बाहर समन की तामील-
धारा 67 के अनुसार, जब समन किसी ऐसे व्यक्ति के नाम जारी किया गया हो जो कि उस न्यायालय के क्षेत्राधिकार के बाहर किसी स्थान पर निवास करता है तो समन जारी करने वाला न्यायालय ऐसे समन की प्रतियाँ उस मजिस्ट्रेट को भेजेगा जिसके कि क्षेत्राधिकार में वह व्यक्ति निवास कर रहा है। वह मजिस्ट्रेट उस समन को सम्यक रीति से सम्बन्धित व्यक्ति पर तामील करायेगा।
(7) साक्षी पर डाक द्वारा समन की तामील-
धारा 69 के अनुसार, साक्षियों को रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा समन भेजे जाने की व्यवस्था की गई है। इसके अनुसार, साक्षियों को समन रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा ऐसे स्थान पर भेजा जाएगा जहाँ-
(i) वह मामूली तौर पर निवास करता है, या
(ii) कार्य करता है, या
(iii) लाभ के प्रयोजन से स्वयं कार्य करता है।
यदि डाक द्वारा भेजे गये समन को ऐसा कोई साक्षी लेने से इंकार कर देता है तो डाक कर्मचारी के इस आशय के पृष्ठांकन के आधार पर न्यायालय ऐसे समन को तामील हुई मान लेगा।
इस रीति का मुख्य उद्देश्य साक्षियों पर समन की तामील में होने वाले विलम्ब से बचना है।
प्रश्न-
न्यायालय में हाजिर होने के लिए विवश करने वाली आदेशिकाएं कौन-कौन सी हैं?
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