भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 दोषसिद्ध या दोषमुक्त
प्रश्न-
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अन्तर्गत साधारण नियम यह है कि जब एक बार सक्षम न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति को अपराध के लिए विचारण किया जा चुका है और दोषसिद्ध या दोषमुक्त किया जा चुका है तो उसी अपराध के लिए फिर से विचारण नहीं किया जायेगा । क्या इस नियम के अपवाद भी है।
उत्तर-
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 337 में साधारण नियम का उपबंध किया गया है जिसके अन्तर्गत एक बार दोषसिद्ध या दोषमुक्त किए गए व्यक्ति का उसी अपराध के लिए विचारण न किया जाना के बारे में उपबंध किया गया हो
विधि का यह एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दण्डित न किया जाय । यह सिद्धान्त सूत्र (nemo debt bis Vexari) पर आधारित है भारतीय संविधान में भी मौलिक अधिकारों के अध्याय में इस प्रकार की व्यवस्था की गई है। भारतीय संविधान में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और विधि के शासन में कानून की सर्वोपरिता को स्थान दिया गया है, संविधान के अनुच्छेद 20 में किसी अभियुक्त व्यक्ति के विभिन्न संरक्षणों का उल्लेख किया गया है यथा -
(1) किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए दण्डित नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसने अपराध करते समय किसी प्रचलित विधि का उल्लघंन नहीं किया हो।
(2) किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिये तत्समम प्रचलित विधि के अन्तर्गत उपवन्धित रीति से अधिक दण्ड नहीं दिया जा सकता ।
(3) किसी भी अभियुक्त को स्वयं अपने विरुद्ध साक्ष्य देने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता ।
(4) किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दोबारा विचारित या दण्डित नहीं किया जा सकता ।
इसे "दोहरे खतरे से संरक्षण" (Double jeopardy) का सिद्धान्त भी कहा जाता है।
ठीक यही व्यवस्था भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा-337 में की गई है। जिसके अनुसार,
(1) जिस व्यक्ति का किसी अपराध के लिए सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय द्वारा एक बार विचारण किया जा चुका है और जो ऐसे अपराध के लिये दोषसिद्ध या दोषमुक्त किया जा चुका है, वह पुनः जब तक ऐसी दोषसिधि या दोषमुक्ती प्रवृत्त रहती है तब तक न तो उसी अपराध के लिए विचारण का भागी होगा न उन्ही तथ्यों पर किसी ऐसे अन्य अपराध के लिए विचारण का भागी होगा जिसके लिए उसके विरुद्ध लगाए गए आरोप से भिन्न आरोप धारा 244 की उपधारा (1) के अधीन लगाया जा सकता था । जिसके लिए वह उसकी उपधारा (2) के अधीन दोषसिद्ध किया जा सकता था।
धारा 337 की उपधारा (1) में पूर्व-दोष- सिद्धि और पूर्व-दोषमुक्ति का जो सिद्धान्त समाविष्ट किया गया है, उसके निम्न अपवाद धारा 337 की उपधारा (2) से(6 ) तक के अंतर्गत दिए गए हैं
धारा 337 (2) के अनुसार, किसी अपराध के लिये दोषमुक्त या दोषसिद्ध किए गए किसी व्यक्ति का विचारण, तत्पश्चात् राज्य सरकार की सम्मति से किसी ऐसे भिन्न अपराध के लिए किया जा सकेगा जिसके लिए पूर्वगामी विचारण में उसके विरुद्ध धारा 243 (1) के अधीन पृथक आरोप लगाया जा सकता था ।
धारा 337 (3) के अनुसार, जो व्यक्ति किसी ऐसे कार्य से. बनने वाले किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, जो ऐसे परिणाम पैदा करता है जो कार्य से मिलकर उस अपराध से, जिसके लिए वह सिद्धदोष हुआ, भिन्न कोई अपराध बनाते हैं, उसका ऐसे अन्तिम वर्णित अपराध के लिए तत्पश्चात् विचारंण किया जा सकेगा, यदि उस समय जब वह दोषसिद्ध किया गया था वे परिणाम हुए नहीं थे या उनका होना न्यायालय को ज्ञात नहीं था।
धारा 337 (4) के अनुसार, जो व्यक्ति किन्ही कार्यों से बनने वाले किसी अपराध के लिए दोषमुक्त या दोषसिद्ध किया गया है, इस पर ऐसी दोषमुक्ति या दोषसिध्दि के होने पर भी, उन्हीं कार्यो से बनने वाले और उसके दुवारा किए गए किसी अन्य अपराध के लिए तत्पश्चात् आरोप लगाया जा सकेगा और उसका विचारण किया जा सकेगा, यदि वह न्यायालय, जिसके द्वारा पहले उसका विचारण किया जा सकेगा, यदि वह न्यायालम, जिसके दवारा पहले उसका विचारण किया गया था, उस अपराध के लिए सक्षम नहीं था जिसके लिए बाद में उस पर आरोप लगाया जाता है।
धारा 337 (5) के अनुसार, धारा 281 के अधीन उन्मोचित किए गए व्यक्ति का उसी अपराध के लिए पुन: विचारण इस न्यायालय की जिसके दूवारा वह उन्मोचित किया गया था, या अन्य किसी ऐसे न्यायालय की, जिसके प्रथम वर्णित न्यायालय अधीनस्थ है, सम्मति के बिना नहीं किया जाएगा।
धारा 337 (6) के अनुसार, इस धारा की कोई बात साधारण खंड अधिनियम , 1897 की धारा 26 के या इस संहिता की धारा 208 के उपबंधों पर प्रभाव नहीं डालेगी।
स्पष्टीकरण-
परिवाद का खारिज किया जाना या अभियुक्त का उन्मोचन इस धारा के प्रयोजनों के लिए दोषमुक्ति नहीं है।
दृष्टांत -
(क) का का विचारण सेवक की हैसियत में चोरी करने के आरोप पर किया जाता है और वह दोषमुक्त कर दिया जाता है। जब तक दोषमुक्ति प्रवृत्त रहे, उस पर सेवक के रूप में चोरी के लिए था उन्हीं तथ्या पर केवल चोरी के लिए या आपराधिक न्यासभंग के लिए वाद में आरोप नहीं लगाया जा सकता । घोर उपहति कारित करने के लिए 'क' का विचारण किया जा सकता है।
(ख) घोर उपहति कारित करने के लिए 'क' का विचारण किया जाता है और वह दोषसिद्ध किया जाता है। क्षत व्याक्ति तत्पश्चात मर जाता है। आपराधिक मानववध के लिए का का पुनः विचारण किया जा सकेगा।
(ग) 'ख' के अपराधिक मानववध के लिए 'क' पर सेशन न्या- यालय के समक्ष आरोप लगाया जाता है और वह दोषसिद्ध
किया जाता है 'ख' की हत्या के लिए 'क' का उन्हीं तथ्यों पर तत्पश्चात विचरण नहीं किया जा सकेगा।
बलबीर सिंह बनाम दिल्ली राज्य 2007 सु. को के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि अभियुक्त टाडा (TADA) अधिनियम के अधीन अपराधों हेतु आरोपित किया गया था इस मामले में आधिनियम के अधीन वाछिंत अनुमति के अभाव में न्यायालय द्वारा कार्यवाहियां अस्तित्वहीन पाई गई। यह अभिनिर्धारित किया गया कि सम्बन्धित न्यायालय द्वारा इस सम्बन्ध में पारित आदेश में यद्यपि दोषमुक्ति शब्द का प्रयोग किया गया था परन्तु इसके फलस्वरूप अभियुक्त को दोषमुक्त नहीं किया जा समता है तात्विक रूप से इस आदेश को केवल उन्मोचित रूप में क्रियान्वित किया जा सकता है । इस वाद में यह भी आभिनिर्धारित किया गया कि यदि अनुमति प्राप्त होने के बाद अभियुक्त के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल किया जाता है तब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 337 का व्यतिक्रमण नहीं माना जाएगा ।
शुबान खान एवं अन्य बनाम उ.प्र. राज्य 2012 के वाद में अभिनिर्धारित किया कि धारा 337 पश्चात्वर्ती विचारण के वर्जन के रूप में प्रवर्तित होती है। अन्य शब्दों में धारा 337 में पूर्व दोषमुक्ति का का सिद्धान्त समाविष्ट है। यदि एक बार व्यक्ति का विचारण अपराध के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा किया जाता है और ऐसे अपराध के लिये दोषासद्धि या दोषमुक्ति प्रवर्तन में बनी रहती है, पूर्व दोषमुक्ति के सिद्धांत को लागू करने के लिये मामलो को धारा 337 के प्रावधानों के अन्तर्गत लाया जाना चाहिये। धारा 337 के प्रावधानों को आकर्षित करने के लिये व्यक्ति की या तो दोषमुक्ति या दोषसिद्धि प्रवर्तन में होनी चाहिए, जब उसे उसी अपराध के लिये या तथ्यों के उसी सम्बन्ध पर आधारित भिन्न अपराध के लिये विचारण किये जाने के लिये अनुरोध किया जाता है। यदि धारा 337 की अपेक्षाओं को पूरा किया जाता है, तो पश्चात्वर्ती कार्यवाही को स्थगित किया जाना चाहिए।
टी. पी. गोपालकृष्णन बनाम केरल राज्य 2022 के वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 337 एक रोक लगाती है जिसमे एक व्यक्ति जिस पर पहले से ही एक सक्षम क्षेत्राधिकार के न्यायालय द्वारा समान तथ्यों से उत्पन्न होने वाले अपराध के लिए विचारण चल चुका है और या तो बरी हो गया है या दोषी ठहराया गया है इस तरह के अपराध को उसी अपराध के लिए समान तथ्यों पर तब तक फिर से विचारण नहीं चलाया जा सकता है जब तक कि इस तरह की दोषमुक्ति या दोषसिध्दि लागू रहती है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 (2) एवं अनुच्छेद 20 से 22 नागरिकों और अन्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता संबंधित है। अनुच्छेद 20(2) स्पष्ट रूप से यह प्रावधान करता है कि किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित या दंडित नहीं किया जाएगा । भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 337 भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2024 की धारा 34, भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा - 9, और सामान्य खंड अधिनियम 1897 की धारा 26 में निहित वैधानिक प्रावधानों द्वारा दोहरे जोखिम के खिलाफ सुरक्षा भी पूरक है।
निष्कर्ष – संक्षेप में हम कह सकते हैं कि उक्त वर्णित आपवादित अवस्थाओं को छोड़कर यदि कोई व्यक्ति किसी सक्षम न्यायालय द्वारा किसी अपराध के लिये विचारित किया जाता है और उसे दोषसिद्ध या दोषमुक्त किया जाता है तो दोबारा उन्हीं तथ्यों पर आधारित किसी अन्य आरोप के लिये उसका पुन विचारण नहीं किया जा सकेगा।
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