प्रश्न - क्या एक अपंजीकरण फर्म के प्रभाव को वाद के लम्बन रहने के दौरान पंजीकरण करके दूर किया जा सकता है ? [ माइनर एक्ट] Minor Acts

                     

   माइनर एक्ट 

प्रश्न - क्या एक अपंजीकरण फर्म के प्रभाव को वाद के लम्बन रहने के दौरान पंजीकरण करके दूर किया जा सकता है ?

उत्तर- प्रस्तुत समस्या धारा धारा 69 पर आधारित है एवं एक अपंजीकृत फर्म के प्रभाव को वाद के लम्बन के दौरान पंजीकृत करके दूर नहीं किया जा सकता है। वाद को दायर करने की तिथि पर फर्म को रजिस्ट्रीकृत हो जाना चाहिए। वाद दायर करने की तिथि से तात्पर्य उस तिथि से है जिस तिथि को वाद पत्र दाखिल यिका जाता है। (हल्दीराम भुजियावाला vs आनंद कुमार दीपक 2007)

अन्नपूर्णा फर्टिलाइजर्स एण्ड जनरल स्टोर्स vs अरूणोदय फर्टिलाइजर्स एंड जनरल स्टोर्स 1994 आंध प्रदेश के मामले में अधिनिर्धारित किया गया कि यदि वाद लाने की तिथि को फर्म रजिस्ट्रीकृत नहीं थी तो ऐसा वाद पोषणीय नहीं होगा। चाहे वह लम्बन के दौरान इसका रजिस्ट्रीकरण क्यों न करा लिया जाय। अर्थात वाद के अरिस्ट्रीकृत की त्रुटि को पश्चातवर्ती प्रक्रम पर दूर नहीं किया जा सकता है।

कविता त्रेन vs में बलसारा हाईजिन प्रॉडक्टस दिल्ली 1992- इस वाद में तो यहां तक कहा गया कि फर्म का वाद संस्थित करने की तिथि को रजिस्ट्रीकृत होना आवश्यक है यदि

ऐसा नहीं है तो वाद सधारणयोग्य अर्थात पोषणीय नहीं होता।

प्रश्न- A, B, C और D एक फर्म में भागीदार है, जो कि पंजीकृत नहीं है। A गलत ढंग से अन्य भागीदारों द्वारा निष्कापित किया जाता है क्या वह अन्य भागीदारों के विरूद्ध गलत ढंग से निष्कासन की क्षति के लिये और यह कि भागीदारी फर्म में भागीदार बना रहे की घोषणा के लिये वाद चला सकता है? यदि को कोई उपचार हो तो बताइये।


उत्तर-प्रस्तुत समस्या में A अपने अधिकारों के प्रवर्तन के लिये वाद संस्थित कर सकता है एवं क्षति प्राप्त कर सकता है यह धारा 33 एवं 69(1) पर आधारित है।

धारा 33(1) भागीदारों के बीच की संविदा द्वारा प्रदत्त शक्तियों के सद्भावपूर्वक प्रयोग के सिवाय भागीदारी फर्म में से किसी भी बहुसंख्या द्वारा निष्कासित नहीं किया जा सकता।

धारा 69 (1) जब तक फर्म रजिस्ट्रीकृत न हो, भागीदार अपने संविदा द्वारा प्रदत अधिकारों को प्रवर्तित कराने हेतु वाद नहीं ला सकते है।

प्रस्तुत समस्या- में भागीदार A को गलत ढंग से निष्कासित किया गया और निष्कासन सद्भावपूर्वक नहीं था अतः उसका निष्कासन अवैध होगा। और धारा 69 के अन्तर्गत भागीदार अपने संविदात्मक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये याद प्रस्तुत नहीं कर सकते, किन्तु जो सांविधिक अधिकार या कामन लॉ द्वारा उन्हें प्राप्त है उन्हें प्रवर्तित कराने हेतु वाद ला सकते है। क्योंकि धारा 33 में निष्कासन सद्भावपूर्वक न होकर गलत ढंग से किया गया है।

अतः A अपने अधिकारों के प्रवर्तन के लिये वाद संस्थित कर सकता है एवं क्षति प्राप्त कर सकता है।

बालाजी श्यामजी छेदा vs बाजीदास पटेल 2013 बाम्बे यदि अरिजिस्ट्रीकृत फर्म का भागीदार इस बात की घोषणा के वाद प्रस्तुत करता है कि भागीदारी फर्म अस्तित्व में आ गई है, और वादी तथा प्रतिवादी उस फर्म में भागीदार है तो वह वाद पोषणीय होगा क्योंकि ऐसी दशा में संविदा के उत्पन्न अधिकारों के प्रवर्तन के लिये वाद संस्थित नहीं किया गया है वरन् सांविधिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये वाद संस्थित किया गया है।


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