आदेश 2 वाद की विरचना (Frame of Suit) (नियम 1-7)
आदेश 2
वाद की विरचना (Frame of Suit)
(नियम 1-7)
सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 2, नियम 2 एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त पर आधारित है कि मांगों और उपचारों को अलग-अलग करके प्रतिवादी या प्रतिवादियों को एक ही वाद हेतुक के लिए दो बार दण्डित नहीं करना चाहिए। वादी को ऐसा करने से विरत करने के लिए यह उपबन्धित किया गया है कि यदि वह मांग या उपचार के किसी भाग को छोड़ देता है या उस वाद हेतुक के सम्बन्ध में उपलब्ध उपचार की मांग करने में असफल हो जाता है तो उसके बाद किसी पश्चात्वर्ती वाद में जिसे वह प्रारम्भ कर सकता है ऐसा करने से विरत कर दिया जायेगा।
आदेश 2 नियम 2 के अनुसार, (1) हर वाद के अन्तर्गत वह पूरा दावा होगा कि जिसे उस वाद हेतुक के विषय में करने का वादी हकदार है, किन्तु वादी वाद को किसी न्यायालय की अधिकारिता के भीतर लाने की दृष्टि से अपने दावे के किसी भाग का त्याग कर सकेगा।
(2) दावे के भाग का त्याग - जहां वादीं अपने दावे के किसी भाग के बारे में वाद लाने का लोप करता है, उसे साशय त्याग देता है, वहां उसके पश्चात् वह इस प्रकार लोप किये गये या त्यक्त भाग के बारे में वाद नहीं लायेगा।
(3) कई अनुतोषों में से एक के लिए वाद लाने का लोप- एक ही वाद-हेतुक के बारे में एक से अधिक अनुतोष पाने का हकदार व्यक्ति ऐसे सभी अनुतोषों या उनमें से किसी के लिए वाद ला सकेगा, किन्तु यदि वह ऐसे सभी अनुतोषों के लिए वाद लाने का लोप न्यायालय की इजाजत के बिना करता है तो उसके पश्चात् वह इस प्रकार लोप किए गए किसी भी अनुतोष के लिए वाद नहीं लाएगा। न्या. की इजाजत से ला सकता है।
स्पष्टीकरण-
इस नियम के प्रयोजनों के लिए कोई बाध्यता और उसके पालन के लिए सांपार्श्विक प्रतिभूति और उसी बाध्यता के अधीन उद्भूत उत्तरोत्तर दावों के बारे में यह समझा जायेगा कि वे क्रमशः एक ही वाद-हेतुक गठित करते हैं।
दृष्टांत-'क' एक घर 'ख' को 1200 रु. वार्षिक भाटक के पट्टे पर देता है। सन् 1905, 1906 और 1907 इन सभी पूरे वर्षों का भाटक शोध्य है और दिया नहीं गया है। 'क' सन 1908 में 'ख' पर केवल सन् 1906 के शोध्य भाटक के लिए वाद लाता है। 'ख' के ऊपर 'क' उसके पश्चात् सन् 1905 या 1907 के शोध्य भाटक के लिए वाद नहीं लाएगा।
अल्का गुप्ता बनाम नरेन्दर कुमार गुप्ता, 2011 सु. को. के वाद में कहा गया कि आदेश-2 नियम-2 जिस पर जोर देता है, वह यह है कि हर वाद के अन्तर्गत वह पूरा दावा होगा जिसके लिये उस वाद हेतुक के विषय में वादी हकदार है। आदेश 2 (2) की वर्जना लागू होने के लिये आवश्यक है कि प्रतिवादी वर्जना के तर्क उठाये और उस पर विवाद्यक की विरचना हो। बिना ऐसा हुये वाद का खारिज करना अवैध है।
कॉफी बोर्ड बनाम रमेश एक्सपोर्ट प्रा. लि., 2014 सु. . को. के वाद में कहा गया कि आदेश 2, नियम 2 की वर्जना के लागू होने के लिये यह आवश्यक है कि वह वादहेतुक जिस पर पूर्ववर्ती वाद लाया गया था, वही वाद हेतुक पश्चात्वर्ती वाद का भी आधार हो और वादी पश्चात्वर्ती वाद में के अनुतोष की पूर्ववर्ती वाद में मांग कर सकता था और दोनों वाद उन्हीं पक्षकारों के बीच हो। दोनों वादों का अध्ययन सम्यक् रूप से करना चाहिए, वाद हेतुकों की पहचान के लिये।
देवाराम बनाम ईश्वरचन्द, 1996 सु. को. के वाद में कहा गया कि जहां वाद भूमि के विक्रय मूल्य की वसूली के लिये लाया गया और खारिज कर दिया गया, पश्चात्वर्ती वाद प्रतिवादियों द्वारा कब्जे के प्रत्युद्धरण के लिये इस आधार पर लाया गया कि वे भूमि के स्वामी हैं, वहां यह अभिनिर्धारित किया गया कि पश्चात्वर्ती वाद में वाद हेतुक भिन्न (अलग) है और यहां पर आदेश 2 नियम 2 की वर्जना लागू नहीं होती।
इसी प्रकार जहां प्रथम वाद बैंक गारण्टी के प्रवर्तन के लिये लाया गया, पश्चात्वर्ती वाद संविदा भंग की नुकसानी के लिये वही संविदा जिसके सम्बन्ध में बैंक गारण्टी दी गयी थी, प्रथम वाद में मांगा गया अनुतोष भिन्न वाद हेतुक पर आधारित है, उस अनुतोष से जिस पर पश्चात्वर्ती वाद आधारित है, वहां उच्चतम न्यायालय के स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम मेसर्स नेशनल कान्सट्रक्शन कं. बाम्बे 1996 सु. को. में यह अभिनिर्धारित किया कि पश्चात्वर्ती वाद आदेश 2, नियम 2 से बाधित नहीं है।
जहां पूर्ववर्ती वाद व्यादेश के लिये लाया गया और तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया, पश्चात्वर्ती वाद स्वत्व की घोषणा एवं कब्जे के प्रत्युद्धरण के लिये लाया गया, वहां उच्चतम न्यायालय ने इनैसियों मार्टिन्स बनाम नारायन हरिनायक, 1993 सु. को. के वाद में अभिनिर्धारित किया कि पश्चात्वर्ती वाद आदेश 2, नियम 2 (3) से बाधित नहीं है।
ज्योति स्वरूप बनाम ललिता, 1985 डेलही के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि जहां पति अपने दाम्पत्य अधिकारों के प्रतिस्थापन के लिये दिये गये आवेदन को वापस ले लेता है, फलस्वरूप ऐसे आवेदन को न्यायालय खारिज कर देता है और पुनः वह (प्रार्थी) विवाह-विच्छेद के लिये आवेदन देता है, वहां यह अभिनिर्धारित किया गया कि ऐसा आवेदन आदेश 2 के नियम 2 से बाधित नहीं होता।
प्रश्न-
वादी वाद को किसी न्यायालय की अधिकारिता में लाने के लिये अपने दावे के किसी भाग को त्याग देता है। क्या त्याग दिये गये दावे के लिए वाद ला सकता है?
वादी द्वारा लाया गया व्यादेश का वाद तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया। वादी द्वारा पश्चात्वर्ती वाद स्वत्व की घोषणा एवं कब्जे के प्रत्युद्धरण के लिए लाया गया। क्या पश्चात्वर्ती वाद आदेश 2 नियम 2 (3) से बाधित होगा?
पति अपने दाम्पत्य अधिकारों के प्रतिस्थापन के लिए दिये आवेदन वापस ले लेता है। ऐसे आवेदन को न्यायालय खारिज कर देता है। पुनः प्रार्थी विवाह विच्छेद के लिए आवेदन देता है। क्या विवाह-विच्छेद के लिये आवेदन आदेश 2 के नियम 2 से बाधित होगा?
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