आदेश-7 वाद-पत्र (Plaint) (नियम 1-18)

                       आदेश-7

           वाद-पत्र (Plaint) (नियम 1-18)


सिविल प्रक्रिया संहिता, 1909 के आदेश-7 में वाद-पत्र के संबंध में प्रावधान किया गया है।

वाद-पत्र वह दस्तावेज है, जिसे न्यायालय में प्रस्तुत करके वादी वाद संस्थित करता है।

दूसरे शब्दों में, वाद-पत्र वादी द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत वह दस्तावेज (document) है, जिसमें वह उन तमाम तथ्यों का अभिवचन करता है, जिनके आधार पर न्यायालय से अनुतोष की मांग करता है। उर्दू में इसे अर्जी दावा कहते हैं।

वाद-पत्र में निम्नलिखित विशिष्टियां होंगी-

(क) उस न्यायालय का नाम जिसमें वाद लाया गया है.

(ख) वादी का नाम, वर्णन और निवास-स्थान,

(ग) जहां तक अभिनिश्चित किये जा सकें, प्रतिवादी का नाम, वर्णन और निवास-स्थान,

(घ) जहां वादी या प्रतिवादी अवयस्क या विकृत चित्त व्यक्ति है वहां उस भाव का कथन,

(ङ) वे तथ्य जिनसे वाद-हेतुक गठित है और कब पैदा हुआ,

(च) यह दर्शित करने वाले तथ्य कि न्यायालय की अधिकारिता है,

(छ) वह अनुतोष जिसका वादी दावा करता है.

(ज) जहां वादी ने कोई मुजरा अनुज्ञात किया है अपने दावे का कोई भाग त्याग दिया है, वहां ऐसी अनुज्ञात की गई या त्यागी गई रकम, तथा

(झ) अधिकारिता के और न्यायालय-फीस के प्रयोजनों के लिये वाद की विषयवस्तु के मूल्य का ऐसा कथन उस मामले में किया जा सकता है।

श्रीमती वैजन्ती नन्दा बनाम जगाय महाप्रभु मारफत अधिकारी महंत, 2014 उड़ीसा के वाद में कहा गया कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 74 के अनुसार, एक वाद-पत्र लोक दस्तावेज नहीं है, साक्ष्य में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसे साक्ष्य के रूप में न्यायालय में प्रस्तुत की गई कोई चीज नहीं माना जा सकता जब तक कि इसकी अन्तर्वस्तु को साबित न कर दिया जाय।

राष्ट्रीय इस्पात निगम लि. बनाम प्रत्युस रिसोर्सेस एण्ड इनफ्रा प्रा. लि.,  2016 सु. को. के वाद में कहा गया कि 'वाद हेतुक' उत्पन्न होता है, जब वास्तविक विवाद वैध होता है। जब कोई पक्षकार अधिकार को दृढ़ता से कहता है और दूसरा पक्षकार उस अधिकार को नकारता है।

प्रश्न

कुछ विशेष प्रकार के वाद-पत्रों में न्यायालय की सुविधा के लिये वादी को कुछ अतिरिक्त प्रकार के कौन से विवरण देने होंगे? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 7 नियम 2 से 8 के अन्तर्गत कुछ विशेष प्रकार के वाद-पत्रों में न्यायालय की सुविधा के लिये वादी को निम्न प्रकार के अतिरिक्त विवरण देने होंगे-

(1) नियम-2 धन के वादों में-

जहां वादी धन वसूली के लिये वाद संस्थित करना चाहता है, वहां वाद-पत्र में दावा की जाने वाली निश्चित राशि का उल्लेख किया जाना चाहिए। लेकिन जहां वादी मध्यवर्ती लाभों के लिये या ऐसी रकम के लिये जो उसके तथा प्रतिवादी के बीच हिसाब किये जाने पर उसको देय पाई जाए या प्रतिवादी के कब्जे में चल सम्पत्ति के लिये ये ऐसे ऋणों के लिये जिनका मूल्य प्रतियुक्त परिश्रम के उपरांत भी निश्चित नहीं कर सकता है, वाद लाता है वहां दावा कृत रकम या मूल्य की अनुमानित राशि का वाद-पत्र में उल्लेख करेगा।

(2) नियम-3 जहां वाद की विषय-वस्तु (अचल) सम्पत्ति है-

जहां वाद की विषय वस्तु स्थावर सम्पत्ति है वहां वादपत्र में सम्पत्ति का ऐसा वर्णन होगा, जो उसकी पहचान कराने के लिये पर्याप्त है। यदि ऐसी सम्पत्ति की पहचान भू-परिमाप या बन्दोबस्त सम्बन्धी अभिलेख में की सीमाओं या संख्याओं द्वारा की जा सकती है तो वाद पत्र में ऐसी सीमाओं या संख्याओं का उल्लेख किया जाना चाहिए।

जोताराम बनाम मो. कादिर, 2007 गोहा. के वाद में कहा गया कि जहां दूसरे पक्षकार ने अचल सम्पत्ति की पहचान के सम्बन्ध में निष्पादन कार्यवाही के दौरान प्रथम बार की, वहां निष्पादन न्यायालय ऐसी आपत्ति को नामंजूर कर सकेगा।

सलाजिंग बनाम श्रीमती विमलानी, 2014 मेघा. के वाद में कहा गया कि वाद में वादी ने वादपत्र में विवादित सम्पत्ति का उचित विवरण नहीं दिया। निम्न न्यायालय ने डिक्री दे दी तथा अपीलीय न्यायालय ने भी डिक्री पुष्ट कर दी। मेघालय उच्च न्यायालय ने अपीलीय न्यायालय की डिक्री को अनुचित ठहराया।

(3) नियम 4 जहां वादी प्रतिनिधि के रूप में वाद लाता है- 

जहां वादी प्रतिनिधि की हैसियत से वाद संस्थित करता है, वहां उसे नियम 4 के अनुसार निम्न शतों की पूर्ति करना आवश्यक है-

(1) वादी को यह दर्शाना होगा कि उसका वाद की विषयवस्तु में वास्तविक विद्यमान हित है, एवं

(2) उसे यह भी दर्शित करना होगा कि उसने सम्बन्धित वाद संस्थित करने के लिये वे सभी आवश्यक कदम उठा लिये हैं, जो उसे वाद संस्थित करने के लिये समर्थ बनाते हैं। किसी व्यक्ति द्वारा निष्पादक, प्रशासक, वारिस अथवा वसीयत पाने वाले के रूप में वाद संस्थित करना प्रतिनिधि हैसियत से वाद संस्थित करना कहा जाता है।

(4) नियम 5 प्रतिवादी के हित और दायित्व का दर्शित किया जाना-

वाद पत्र में यह दिखाया जायेगा कि प्रतिवादी विवादित विषयवस्तु में हितबद्ध है के हितबद्ध होने का दावा करता है तथा वह वादी की मांग का उत्तर देने के लिये दायित्वाधीन है।

(5) नियम 6 मर्यादा विधि से छूट के आधारों का उल्लेख करना-

जहां वादी द्वारा वाद मर्यादा विधि में उल्लिखित सीमा की समाप्ति के बाद संस्थित किया गया है, वहां वादी को उन आधारों का जिन पर मर्यादा विधि में छूट पाने का दावा किया गया है, उल्लेख करना होगा। यदि वादी मर्यादा विधि में छूट पाने का आधार वाद-पत्र में उल्लिखित नहीं करता है तो वादी मर्यादा विधि में छूट का तर्क प्रथम बार द्वितीय अपील में प्रस्तुत नहीं कर सकता।

परन्तु, 

न्यायालय वादी को उसके वाद-पत्र में अंकित किये गये आधार से अन्यथा आधार का सहारा लेने की अनुमति दे सकेगा बशर्ते वह असंगत नहीं हो।

(6) नियम 7 अनुतोष का विनिर्दिष्ट रूप से कथन किया जाना-

वादी जिस अनुतोष की मांग करता है उसे वह सामान्यतया या वैकल्पिक रूप में वाद-पत्र में उल्लेखित करेगा। जहां तक सामान्य अनुतोष का प्रश्न है, वाद-पत्र में लिखित रूप में मांगने की आवश्यकता नहीं है, न्यायालय उसे यदि न्यायसंगत समझता है, तो स्वयं देगा। यह नियम प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत लिखित कथन पर भी लागू होता है।

(7) नियम 8 पृथक आधारों पर आधारित अनुतोष -

 जहां वादी कई भिन्न वादों या वाद कारणों के बारे में जो पृथक और भिन्न आधारों पर आधारित हैं, अनुतोष चाहता है, वहां वे जहां तक हो सके, पृथक रूप से और भिन्न रूप से कथित किये जाने चाहिए।

प्रश्न- वाद-पत्र को ग्रहण करने एवं वाद-पत्र को लौटाये जाने के संबंध में क्या प्रावधान किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

अथवा

जहां वाद-पत्र लौटाये जाने के पश्चात् फाइल किया जाता है, वहां न्यायालय में उपस्थिति के लिये तारीख निश्चित करने की न्यायालय की शक्ति क्या है? स्पष्ट कीजिए।

अथवा

समुचित न्यायालय को वाद अन्तरित करने की अपील न्यायालय की शक्ति की विवेचना कीजिए।

उत्तर- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 7, नियम 9, 10 वाद-पत्र में वाद-पत्र को ग्रहण करने एवं लौटाने के बारे में प्रावधान किया गया है।

नियम-9 वाद-पत्र ग्रहण करने पर प्रक्रिया-

न्यायालय द्वारा वाद-पत्र ग्राह्य कर लिये जान पर, वहां न्यायालय सभी प्रतिवादियों के नाम समन, आदेश 5 में उल्लिखित रीति से तामील करने हेतु आदेश देता है, तो न्यायालय वादी को वाद-पत्र की सादा कागज पर इतनी प्रतियां जितने प्रतिवादी हैं तथा प्रतिवादी पर समन की तामील के लिये अपेक्षित फीस सहित ऐसे आदेश के सात दिन के भीतर, प्रस्तुत करने का निर्देश देगा।

नियम 10 वाद-पत्र का लौटाया जाना-

 (1) नियम 10 'क' के उपबन्धों के अधीन रहते हुये वाद-पत्र के किसी भी प्रक्रम में उस न्यायालय में उपस्थित किये जाने के लिये लौटा दिया जायेगा और जिसमें वाद संस्थित किया जाना चाहिए था।

स्पष्टीकरण-

शंकाओं को दूर करने के लिये उसके द्वारा यह घोषित किया जाता है कि अपील या पुनरीक्षण न्यायालय वाद में पारित डिक्री को अपास्त करने के पश्चात्, इस उपनियम के अधीन वाद-पत्र के लौटाये जाने का निर्देश दे सकेगा।

वाद-पत्र के लौटाये जाने पर प्रक्रिया (2) न्यायाधीश वाद-पत्र के लौटाये जाने पर, उस पर उसके उपस्थित किये जाने की और लौटाये जाने की तारीख, उपस्थित करने वाले पक्षकार का नाम और उसके लौटाये जाने के कारणों का संक्षिप्त कथन पृष्ठांकित करेगा।

ओ. एन. जी. सी. लि. बनाम मेसर्स माडर्न कान्सट्रक्शन कं. 2014 सु. को. के वाद में कहा गया कि जब वाद-पत्र को नये सक्षम न्यायालय में दाखिल किया जाता है, तो पुनः प्रस्तुत वाद-पत्र को एक नया वाद-पत्र माना जाता है। वाद का विचारण भी नये तरीके से होना चाहिए। 

नियम 10 'क' जहां वाद-पत्र उसके लौटाये जाने के पश्चात् फाइल किया जाता है। वहां न्यायालय में उपसंजाति के लिये तारीख नियत करने की न्यायालय की शक्ति-

(1) जहां किसी वाद में प्रतिवादी के उपसंजात होने के पश्चात् न्यायालय की यह राय है कि वाद-पत्र लौटाया जाना चाहिए वहां वह ऐसा करने के पूर्व वादी को अपने विनिश्चय की सूचना देगा।

(2) जहां वादी को उपनियम (1) के अधीन सूचना दी गई हो, वहां वादी न्यायालय ने-

(क) उस न्यायालय को विनिर्दिष्ट करते हुए जिसमें वह वाद-पत्र के लौटाये जाने के पश्चात् वाद-पत्र प्रस्तुत करने की प्रस्थापना करता है।

(ख) यह प्रार्थना करते हुए कि न्यायालय उक्त न्यायालय में पक्षकारों की उपसंजाति के लिये तारीख नियत करे, और

(ग) यह अनुरोध करते हुए कि इस प्रकार नियत तारीख की सूचना उसे और प्रतिवादी को दी जाये, आवेदन कर सकेगा।

(3) जहां वादी द्वारा उपनियम (2) के अधीन आवेदन किया जाता है। वहां न्यायालय वाद-पत्र लौटाये जाने के पूर्व और इस बात के होते हुए भी कि उसके द्वारा वाद-पत्र के लौटाये जाने का आदेश इस आधार पर किया गया था कि उसे वाद का विचारण करने की अधिकारिता नहीं थी-

(क) उस न्यायालय में जिसमें वाद-पत्र के उपस्थित किये जाने की प्रस्थापना है, पक्षकारों की उपसंजाति के लिये तारीख नियत करेगा, और

(ख) उपसंजाति की ऐसी तारीख की सूचना वादी और प्रतिवादी को देगा।

(4) जहाँ उपनियम (3) के अधीन उपसंजाति की तारीख की सूचना दी जाती है, वहाँ-

(क) उस न्यायालय के लिये जिसमें वाद-पत्र उसके लौटाये जाने के पश्चात् उपस्थित किया जाता है, तब तक यह आवश्यक नहीं होगा कि वह वाद में उपसंजाति के लिये समन प्रतिवादी पर तामील करे, जब तक कि वह न्यायालय, अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से अन्यथा निर्देश न दे, और

(ख) उक्त सूचना, उस न्यायालय में जिसमें वाद-पत्र को लौटाने वाले न्यायालय द्वारा इस प्रकार नियत तारीख को वाद-पत्र उपस्थित किया जाता है, प्रतिवादी की उपसंजाति के लिए समन समझी जायेगी।

(5) जहां न्यायालय वादी द्वारा उपनियम (2) के अधीन किये गये आवेदन को मंजूर कर लेता है, वहां वादी वाद-पत्र लौटाये जाने के आदेश के विरुद्ध अपील करने का हकदार नहीं होगा।

के. पी. चन्द्रा पिल्लई बनाम केशव पिल्लई, 2009 (एन. ओ. सी.) (केरल) के वाद में केरल उच्च न्यायालय ने निर्णीत किया कि सी. पी. सी. में अपील के मेमोरेन्डम को लौटाने के प्रावधान नहीं होने के कारण वाद-पत्र को लौटाने सम्बन्धी आदेश 7 नियम 10 के प्रावधान लागू होंगे। अतः अपील न्यायालय का क्षेत्राधिकार नहीं है तो वह मेमोरेन्डम ऑफ अपील को उचित न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिये लौटा सकेगा।

नियम 10 'ख' समुचित न्यायालय को वाद अन्तरित करने की अपील-

न्यायालय की शक्ति (1) जहां वाद-पत्र के लौटाये जाने के आदेश के विरुद्ध अपील में अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय ऐसे आदेश की पुष्टि करता है वहां अपील न्यायालय, यदि वादी आवेदन द्वारा ऐसी वांछा करे तो वाद-पत्र लौटाते समय वादी को यह निर्देश दे सकेगा कि वह वाद-पत्र को उस न्यायालय में जिसमें वाद संस्थित किया जाना चाहिए था (चाहे ऐसा न्यायालय उस राज्य के भीतर हो या बाहर जिसमें अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय स्थित है) परिसीमा अधिनियम 1963 के उपबन्धों के अधीन रहते हुये, फाइल करे और उस न्यायालय में जिसमें वाद-पत्र फाइल किये जाने का निर्देश दिया जाता है, पक्षकारों की उपसंजाति के लिये तारीख नियत कर सकेगा और जब इस प्रकार तारीख नियत कर दी जाती है तब उस न्यायालय के लिये जिसमें वाद-पत्र फाइल किया गया है वाद में उपसंजाति के लिये समन प्रतिवादी पर तामील करना तब तक आवश्यक नहीं होगा, जब तक कि वह न्यायालय जिसमें वाद-पत्र फाइल किया गया है, अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से, अन्यथा निर्देश न दे।

(2) न्यायालय द्वारा उपनियम (1) के अधीन किये गये किसी निर्देश से पक्षकारों के उन अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा, जो उस न्यायालय की जिसमें वाद-पत्र फाइल किया गया वाद का विचारण करने की अधिकारिता को प्रश्नगत करने के सम्बन्ध में है।

मे. बिन्दल लोंगसन प्रा. लि. बनाम अशोक हैण्डलूम, 2007 (एन. ओ. सी.) ए. पी. के वाद में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने निर्णीत किया कि उस मामले में जहां न्यायालय के वाद-पत्र के लौटाने की अपील की गई हो तो अपीलीय न्यायालय का यह अधिकार है कि ऐसे मामले को सक्षम अदालत में प्रस्तुत करने का आदेश दे, न कि ऐसे मामले का गुण व दोष के आधार पर निर्णय करे। यदि ऐसा करता है तो न्यायालय की अधिकारिता के अभाव में अपास्त हो जायेगी।

श्रीमती अचन्ता छाया देवी बनाम स्टेट ऑफ तेलंगाना 2018 के वाद में विक्रय-पत्र के निरस्तीकरण हेतु वाद पत्र पेश किया गया था। इसमें सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के अन्तर्गत नोटिस नहीं दिये जाने के कारण वाद-पत्र को लौटा दिया गया। हैदराबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया कि रजिस्ट्रीकरण प्राधिकारी आवश्यक पक्षकार नहीं है। उसे डिक्री की प्रतिलिपि भेजा जाना पर्याप्त है। अतः नोटिस दिया जाना आवश्यक नहीं है। वाद को लौटाये जाने के आदेश को अवैध ठहराया गया।

अपीलीय न्यायालय भी वादों को समुचित न्यायालय को अन्तरित करने का निर्देश दे सकेंगे। (आदेश 7, नियम 10-बी)

प्रश्न- व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत वाद-पत्र अस्वीकार करने संबंधी प्रावधान क्या है?

अथवा

वादी को वाद-पत्र अस्वीकार किये जाने के विरुद्ध क्या उपचार उपलब्ध है? 

अथवा

न्यायालय की अनुमति के बिना किसी वाद या दावे के भाग के प्रत्याहरण के परिणाम का वर्णन कीजिए?

'क' एक वादी दिनांक 28.4.1986 को वाद प्रस्तुत करता है। इस कार्यवाही में प्रतिवादी के द्वारा उचित न्याय शुल्क की अदायगी के संबंध में आपत्ति उठाये जाने पर वादी बिना न्यायालय की अनुमति लिये एवं बिना प्रथम वाद को प्रत्याहत्त किए अन्य वाद दिनांक 23.3.1987 को प्रस्तुत कर देता है। बताइये कि क्या द्वितीय वाद पोषणीय है।

अथवा

न्यायालय द्वारा वाद पत्र कब नामंजूर कर दिया जाता है?

अथवा

(i) किन परिस्थितियों में न्यायालय द्वारा वाद-पत्र को नामंजूर किया जा सकता है?

(ii) निम्नलिखित को कारण सहित स्पष्ट कीजिए-

(अ) क्या वाद नामंजूर करने वाला आदेश आज्ञप्ति की श्रेणी में आता है?

(ब) वाद-पत्र नामंजूर होने की दशा में क्या वादी नया वाद-पत्र प्रस्तुत करने से प्रतिवारित रहेगा?

उत्तर-

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7, नियम 11, 12, 13 में वाद-पत्र के नामंजूर किये जाने के बारे में प्रावधान किया गया है।

नियम 11 वाद-पत्र का नामंजूर किया जाना-वाद-पत्र को निम्नलिखित दशाओं में नामंजूर कर दिया जायेगा-

(क) जहां वाद हेतुक प्रकट नहीं करता है,

(ख) जहां दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन कम किया गया है और वादी मूल्यांकन को ठीक करने के लिये न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर जो न्यायालय ने नियत किया है, ऐसा करने में असफल रहता है,

(ग) जहां दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन ठीक है, किन्तु वाद-पत्र अपर्याप्त स्टाम्प-पत्र पर लिखा गया है और वादी अपेक्षित स्टाम्प-पत्र देने के लिये न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर, जो न्यायालय ने नियत किया है, ऐसा करने में असफल रहता है,

(घ) जहां वाद में के कथन से यह प्रतीत होता है कि वाद किसी विधि द्वारा वर्जित है,

(ङ) जहां यह दो प्रतियों में दाखिल नहीं किया जाता,

(च) जहा वादी) नियम 9 के उपबन्धों का अनुपालन करने में असफल रहता है,

परन्तु

मूल्यांकन की शुद्धि के लिये (या अपेक्षित स्टाम्प-पत्र के देने के लिये न्यायालय द्वारा नियत समय तब तक नहीं बढ़ाया जायेगा, जब तक कि न्यायालय का अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से यह समाधान नहीं हो जाता है कि वादी किसी असाधारण कारण से न्यायालय द्वारा नियत समय के भीतर, यथास्थिति मूल्यांकन की शुद्धि करने का अपेक्षित स्टाम्प पत्र के देने से रोक दिया गया था और ऐसे समय के बढ़ाने से इन्कार किये जाने से वादी के प्रति गम्भीर अन्याय होगा।

चर्च ऑफ क्राइस्ट चैरिटेबुल ट्रस्ट बनाम पोन्त्रियाम्मन एजुकेशनल ट्रस्ट, 2012 सु. को. के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि जिस वाद-पत्र में वाद हेतुक प्रकट नहीं होता, न्यायालय उसे नामंजूर कर देगा।

पोन्नाला लक्षमियां बनाम के. पी. रेड्डी,  2012 सु. को.के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि न्यायालय को समूचे वाद-पत्र को पढ़ना चाहिए। यह पता लगाने के लिये कि क्या यह वाद हेतुक प्रकट करता है या नहीं और यदि यह करता है तो वाद-पत्र न्यायालय द्वारा आदेश 7 नियम 11 के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए खारिज नहीं किया जा सकता।

एक चुनाव याचिका को सरसरी तौर पर खारिज किया जा सकता है अगर उसमें वाद-हेतुक नहीं दर्शाया गया है, क्योंकि यह स्थापित विधि है कि एक भी सारवान तथ्य का लोप वाद हेतुक की अपूर्णता को स्पष्ट करता है। यह चुनाव याचिका भ्रष्ट आचरण सम्बन्धी तथ्यों के अभाव में चुनाव याचिका है ही नहीं। ऐसा निर्णय उच्चतम न्यायालय ने अजहर हुसैन बनाम राजीव गांधी, 1986 सु. को. नामक वाद में दिया।

हिमालय विन्ट्रेड प्रा० लि० बनाम मो० जाहिद 2021 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि जहाँ कोई वाद वाद-कारण को प्रकट नहीं करता हो, वहाँ ऐसे वाद को आदेश 7 नियम 11 के अन्तर्गत खारिज किया जा सकेगा।

नियम 12 वाद-पत्र के नामंजूर किये जाने की प्रक्रिया-

जहां वाद-पत्र नामंजूर किया जाता है वहां न्यायालय इस भाव का आदेश, कारणों सहित अभिलिखित करेगा।

नियम 13 जहां वाद-पत्र की नामंजूरी से नये वाद-पत्र का उपस्थित किया जाना प्रवारित नहीं होता-

इसमें इसके पूर्व वर्णित आधारों में से किसी पर भी वाद-पत्र के नामंजूर किये जाने पर केवल नामंजूरी के ही कारण वादी इसी वाद हेतुक के बारे में नया वाद-पत्र उपस्थित करने से प्रवारित नहीं हो । न्यायालय की अनुमति के बिना किसी वाद या दावे के भाग को प्रत्याहरण किया जाता है तो वादी ऐसी विषय वस्तु या दावे के ऐसे भाग के बारे में कोई नया वाद संस्थित करने से प्रवारित होगा।

समस्या-

'क' उचित न्याय शुल्क की अदायगी के संबंध में आपत्ति उठाए जाने पर बिना न्यायालय की अनुमति के लिए एवं बिना प्रथम वाद को प्रत्याहृत किए अन्य वाद संस्थित कर देता है। आदेश 7 नियम 11 के अनुसार उचित न्याय शुल्क के अदा न करने पर वाद खारिज कर दिया जाता है। वहां आदेश 7 नियम 13 के अनुसार उसी वाद हेतुक पर नया वाद ला सकता है परन्तु ऐसा वाद परिसीमा अधिनियम के संगत प्रावधानों के अधीन होगा।

क्या वाद नामंजूर करने वाला आदेश आज्ञप्ति की श्रेणी में आता है-

ऐसा आदेश जिसके माध्यम से वाद-पत्र नामंजूर किया गया है, उसे संहिता की धारा 2 (2) के अधीन डिक्री की संज्ञा दी गई है और ऐसे आदेश के विरुद्ध डिक्री की भांति अपील की जा सकती है। परन्तु जहां कोई अपील नहीं करता, और उसी वाद हेतुक को लेकर एक नया वाद संस्थित करना चाहता है, वहां उसे ऐसा करने से रोका नहीं जा सकता।


प्रश्न-

 सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 7 के अन्तर्गत वाद-पत्र के साथ संलग्नित दस्तावेजों का उल्लेख कीजिए

उत्तर-

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 14 से 18 में उन दस्तावेजों का उल्लेख किया गया है, जिनको वादी ने अपने वाद-पत्र में वाद का आधार माना है। इन नियमों के निम्न प्रावधान है। नियम 15 एवं 18 संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा समाप्त कर दिये गये।

नियम 14 जिस दस्तावेज के आधार पर वादी वाद लाता है या निर्भर करता है। उसका पेश किया जाना-

 (1) जहां एक वादी अपने दावे के समर्थन में अपने कब्जे या शक्ति के दस्तावेज के आधार पर वाद लाता है या दस्तावेज पर निर्भर करता है, वहां वह ऐसे दस्तावेजों को एक सूची में प्रविष्ट करेगा और वाद-पत्र उपस्थित किये जाने के समय उसे न्यायालय में पेश करेगा और उसी समय दस्तावेज और उसकी एक प्रति वाद-पत्र के साथ दाखिल किये जाने के लिये परिदत्त करेगा।

(2) जहां ऐसा कोई दस्तावेज वादी के कब्जे या शक्ति में नहीं है। वहां वह जहां कहीं सम्भव हो, अधिकथित करेगा कि यह किसके कब्जे या शक्ति में है।

(3) एक दस्तावेज, जो वादी को उस समय पेश करना चाहिए या जब वाद-पत्र न्यायालय में उपस्थित किया गया या जोड़ी जाने वाली सूची में प्रविष्ट किया जाना चाहिए था या वाद-पत्र के साथ उपाबद्ध किया जाना चाहिये था परन्तु तदनुसार पेश या प्रविष्ट नहीं किया गया, को वाद की सुनवाई पर उसकी ओर से न्यायालय की अनुमति के बिना साक्ष्य में ग्रहण नहीं किया जायेगा।

(4) इस नियम की कोई बात उस दस्तावेज को लागू नहीं होगी जो वादी के साक्षियों की प्रतिपरीक्षा के लिये पेश किया गया या साक्षी को केवल उसकी स्मृति को ताजा करने के लिये सौंपा गया।

सत्यनारायण पालीवाल बनाम मुकेश पटेल 2021 के मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा यह विनिर्धारित किया गया है कि ऐसे किसी दस्तावेज को पेश किए जाने की अनुज्ञा नहीं दी जा सकती, जिससे सम्पूर्ण मामला पुनः आरम्भतः सुनवाई के प्रक्रम पर आ जाये और वादी (दस्तावेज प्रस्तुतकर्ता) लापरवाही का दोषी रहा हो।

नियम 16 खोई हुई परक्राम्य लिखतों के आधार पर वाद-

जहां वाद परक्राम्य लिखत पर आधारित है और यह साबित कर दिया जाता है कि लिखत खो गई है और वादी ऐसी लिखत पर आधारित किसी अन्य व्यक्ति के दावों के लिये क्षतिपूर्ति, न्यायालय को समाधानप्रद रूप में कर देता है। वहां न्यायालय ऐसी डिक्री पारित कर सकेगा, जो वह पारित करता, यदि वादी ने उस समय जब वाद-पत्र उपस्थित किया गया था, उस लिखत को पेश किया होता और उस लिखत की प्रति वाद-पत्र के साथ फाइल किये जाने के लिये उसी समय परिदत्त कर दी होती।

नियम-17 दुकान का बही-खाता पेश करना (1) वहां तक के सिवाय जहां तक कि बैंककार बहीं साक्ष्य अधिनियम, 1891 द्वारा अन्यथा उपबन्धित है, उस दशा में जिसमें कि वह दस्तावेज जिसके आधार पर वादी वाद लाता है, दुकान के बही-खाते या अन्य लेखों में की जो उसके अपने कब्जे या शक्ति में है, प्रविष्टि की जिस पर वह निर्भर करता है, प्रति के सहित उस बही-खाते या लेखे को वाद-पत्र के फाइल किये जाने के समय पेश करेगा।

(2) मूल प्रविष्टि का चिन्हांकित किया जाना और लौटाया जाना-न्यायालय या ऐसा अधिकारी जिसे वह इस निमित्त नियुक्त करे तत्क्षण दस्तावेज को उसकी पहचान के प्रयोजन के लिये चिन्हांकित करेगा और प्रति की परीक्षा और मूल से तुलना करने के पश्चात् यदि वह सही पाई जाये तो वह प्रमाणित करेगा कि वह ऐसी है और बही-खाता वादी को लौटाएगा और प्रति को फाइल करेगा।




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